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Sunday, May 30, 2010

प्यार में उम्र का फासला नहीं होता

प्यार में उम्र का फासला नहीं होता
प्यार तो प्यार है दिखावा नहीं होता 
यह तो है बहती धारा अमृत की 
पीये बिना जीया भी नहीं जाता 

यह बात मुझे  तब समझ में आयी 
उम्र के इस पड़ाव में किया जग हसाई 
मेरी उम्र चालीस एक पुत्र का पिता 
मेरी पत्नी सुशील और पतिव्रता 

पर मन मेरा रहा न मेरे बस में 
एक उन्नीस साल की लड़की बस गयी मरे रग रग में 
पत्नी की सुघड़ता से  मैंने  मुह  मोड़  लिया    
उससे आँखें चुराकर मैने प्यार बदल लिया


पर यथार्थ का धरातल है सख्त
कुछ सोचने समझने के लिये मिला नही वक्त
विवाह का प्रस्ताव जब लायी वो मेरे समक्ष
मै न पाया अपने को उसके समकक्ष

मै था विवाहित एक पुत्र का पिता
अखिर इस समाज का मुझे भी तो डर था
प्रस्ताव को अस्वीकार कर अप्ने को अलग कर लिया
पर मैने न सोचा उसने भी तो मुझसे ही केवल प्यार किया

समय के साथ भूला मै इस अवन्छित घटनाक्रम को
पर नियति न उसके सामने खडा कर दिया लाकर मुझको
आखे खोलकर जब देखा तो सामने थे कई डाक्टर
सामने थी वो मेरे अजनबी डोक्टर बनकर

मेरा ये पुरुष मन हारने से डरता था
मेरे सामने थी वो पर मैने न पहचाना था
पर साबित तो उसने किया अपने आप को
वो तो मै था मिथ्या भ्रम मे रखा था खुद को और उसको

7 comments:

  1. sahi ya galat nahi janta par ek sundar rachna

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  2. इश्क एक ऐसी शै है जो लगाए ना लगे और बुझाए ना बुझे..

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  3. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  4. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

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  5. अच्छी रचना ....!

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  6. बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति....

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