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Thursday, April 8, 2010

प्राण वायु की तरह

ये विभावरी  गयी क्यों जागरण से
कौन ले गया नींद इन अखियन से 
मर गए हम तुम्हारी इन आंख मिचौली से

ये अकेली फिर रही हूँ मै किसके लिए
ये आँखें है प्यासी किसके  झलक के लिए
क्यों रुदन करे हिया केवल उसके लिए

क्यों वेदना से भर गया हृदय मेरा
ये छलछलाती आँखों का क्रंदन मेरा
कहीं बरस जाए न बादल की तरह
आ जाओ जीवन में सांसों की तरह

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