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Friday, May 28, 2010

मेरे गाँव में आना..................

मेरे गाँव में आना......................
जहां नदी इठलाती हुई कहती है
आजा पानी में तर जा
ये अमृत सा बहता है

मेरे घर का पता ...............
आम के पेड़ के पीछे
पुराने मंदिर के नीचे
जहां भगवान् बसते है

मेरी शिक्षा-दीक्षा..................
किताब से बाहर यथार्थ के धरातल पर
बड़ों को सम्मान पर स्वयं पर आत्मनिर्भर

मेरे मन की शक्ति ..................
अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध
आवाज़ उठाना विरोध जताना
सबको ये महसूस कराना
अपने अधिकार और कर्तव्य
पर करो चिंतन

पर मेरे गाँव के लोग ....................
बड़े भोले-भाले से
रहते है सीधे-सादे से
करते है सहज बात 

4 comments:

  1. वाह ,,गाँव का ,,,बहुत सुन्दर और सजीव चित्रण किया है ,,,गाँव की फिजा की बात निराली है ,,,जो आपकी रचना में साफ़ झलक रहा है,,,,गाँव के भोले लोग आज भी सारा हुन्दुस्तान अपने हिरदय में समेटे हुए है ,,,मैं खुद राजस्थान के एक देहाती गाँव से हूँ ....आपकी बात मन से समझ सकता हूँ ,,,,,बहुत अच्छी रचना

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  2. हमारे गाँ के लोग भी ऐसे ही हैं ... शायद अधिकांश गाँव के लोग ऐसे ही है
    सुन्दर रचना,

    ReplyDelete

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