ये कैसी अग्निवाण है बैसाख में
जल रही है धरती जल रहा है गगन
जैसे आग उगल रही है
क्या यही है ग्लोबल वर्मिंग ?
नभ-नील रंग बदलकर
रक्ताभ आवरण ओढ़ लिया
चिलचिलाती धुप ने
बैसाख का रंग बदल दिया
पवन देव ने भी जैसे
आग का चोला पहन लिया
शायद यही है ग्लोबल वार्मिंग
जानकारों ने क्या सही कहा
अग्निवाण है झेलना
क्या यही रहा जायेगा भाग्य में
क्यों न सचेत हो जाए
सावधानियां हम बरत लें
निषिद्ध वस्तुओं का प्रयोग
त्याग दे हम सर्वदा
मौसम के बदलते स्वभाव का
विश्लेषण कर लें सर्वथा
क्यों न इस सुन्दर धरा को
बचाएं आग के शोलों से
ओजोन जैसे रक्षा कवच को
सुसक्षित रखें न खोने दे
गर दो साथ वचन है मेरा
धरती हम मंडराएंगे
सन २०१२ की काल्पनिक कथा को
मिथ्या सिद्ध कर दिखाएँगे
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