आँखों में जल रहा है क्यूँ बुझाता नहीं धुआं
उठाता तो है घटा सा बरसता नहीं धुंआ
उठाता तो है घटा सा बरसता नहीं धुंआ
चूल्हा नहीं जलाए या बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठाता नहीं धुंआ
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठाता नहीं धुंआ
आँखों से पोंचाने से लगा आंच का पता
यूं चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुंआ
यूं चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुंआ
आँखों से आंसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमान ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुंआ
gulzar
मेहमान ये घर में आयें तो चुभता नहीं धुंआ
gulzar
बहुत बेहतरीन!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...
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