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Sunday, May 23, 2010

मरासिम


आँखों  में  जल  रहा  है  क्यूँ  बुझाता  नहीं  धुआं 
उठाता  तो  है  घटा  सा  बरसता  नहीं  धुंआ 
चूल्हा  नहीं  जलाए  या  बस्ती  ही  जल  गई 
कुछ  रोज़  हो  गए  हैं  अब  उठाता  नहीं  धुंआ 
आँखों  से  पोंचाने  से  लगा  आंच  का  पता
यूं  चेहरा  फेर  लेने  से   छुपता  नहीं  धुंआ 
आँखों  से  आंसुओं  के  मरासिम  पुराने  हैं
मेहमान  ये  घर  में  आयें  तो  चुभता  नहीं  धुंआ

gulzar

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