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Wednesday, May 26, 2010

विस्मय से जागृत हुआ ये प्राण

सूर्य-तारा से भरा हुआ असमान
ये विश्व जिसमे भरा है प्राण
इन सबके साथ मैंने भी पाया है अपना स्थान
आश्चर्य से पुलकित हो गया प्राण

इस सीमाहीन प्राणों के तरंगों पर
भुवन झूमता है जिस ज्वार-भाटा पर
रगों में बह रही रक्त धारा में
प्रतीत होता है अपनापन

वन के राह पर जाते हुए
जिन घासों पर कदम रखा
फूलों के खुशबुओं से चमक उठा मन 
मन हुआ है मतवारा
फैला चारों ओर आनंद-गान
विस्मय से जागृत हुआ ये प्राण

आँख और कान को धरती पर बिछाया
धरती के सीने में अपने प्राण को उडेला
"जाना " से "अनजाना" का संधान मिला
विस्मय से जागृत हुआ ये प्राण

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