प्यार में उम्र का फासला नहीं होता
प्यार तो प्यार है दिखावा नहीं होता
यह तो है बहती धारा अमृत की
पीये बिना जीया भी नहीं जाता
यह बात मुझे तब समझ में आयी
उम्र के इस पड़ाव में किया जग हसाई
मेरी उम्र चालीस एक पुत्र का पिता
मेरी पत्नी सुशील और पतिव्रता
पर मन मेरा रहा न मेरे बस में
एक उन्नीस साल की लड़की बस गयी मरे रग रग में
पत्नी की सुघड़ता से मैंने मुह मोड़ लिया
उससे आँखें चुराकर मैने प्यार बदल लिया
पर यथार्थ का धरातल है सख्त
कुछ सोचने समझने के लिये मिला नही वक्त
विवाह का प्रस्ताव जब लायी वो मेरे समक्ष
मै न पाया अपने को उसके समकक्ष
मै था विवाहित एक पुत्र का पिता
अखिर इस समाज का मुझे भी तो डर था
प्रस्ताव को अस्वीकार कर अप्ने को अलग कर लिया
पर मैने न सोचा उसने भी तो मुझसे ही केवल प्यार किया
समय के साथ भूला मै इस अवन्छित घटनाक्रम को
पर नियति न उसके सामने खडा कर दिया लाकर मुझको
आखे खोलकर जब देखा तो सामने थे कई डाक्टर
सामने थी वो मेरे अजनबी डोक्टर बनकर
मेरा ये पुरुष मन हारने से डरता था
मेरे सामने थी वो पर मैने न पहचाना था
पर साबित तो उसने किया अपने आप को
वो तो मै था मिथ्या भ्रम मे रखा था खुद को और उसको
sahi ya galat nahi janta par ek sundar rachna
ReplyDeleteइश्क एक ऐसी शै है जो लगाए ना लगे और बुझाए ना बुझे..
ReplyDeleteतारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
ReplyDeleteसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteअच्छी रचना ....!
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति....
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