कविता , कहानी या ग़ज़ल
वर्ण, छंद लय हाथ न आये
स्वयं रचूं या करूँ नक़ल
पर रचना अपने आप जो आये
उसकी महत्ता ही निराली है
शब्द जो स्वयं रच जाए
अपनी रचना वो कहलाती है
अपने भावों को शब्दों में ढाला
तो कविता रच गयी
धीरे - धीरे खोयी व्यंजना
शब्दों में आकर ढल गयी
इस तरह मेरे कविता को
एक शरीर मिल गया
खोयी हुई अपनी काया को
अंतत: कविता ने हासिल कर लिया
LaGASSE's SIGNATURE 'FOSSIL TEXTURE' PAINTINGS.
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wastav me....
ReplyDeleteवाह कुछ लिखने की सोच पर भी यूं लिखा जा सकाता है
ReplyDeleteआपकी पोस्ट अच्छी है
ReplyDeleteबहुत खूब्।
ReplyDeletesunder abhivyakti.
ReplyDeleteकविता स्वयं ही रूप धारण करती है...अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDelete...सुन्दर !!!
ReplyDeleteहर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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