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Tuesday, June 15, 2010

भ्रमर कहे..................

 red roses गुलाब का फूल खिला है इधर 
मधुप मत जाओ रे 
फूलों से शहद लेते हुए कहीं 
तुम  काँटों से आहत न हो रे 


इधर है बेला उधर है चम्पा 
विविध फूल है सर्वत्र 
व्यथा कथा अपने मन की 
कह दो ये यहाँ है एकत्र 


भ्रमर कहे मै ये जानूं 
इधर बेला है उधर नलिनी 
पर मैं न जाऊं इधर - उधर 
ये नहीं है मेरी संगिनी 


मैं तो अपनी व्यथा-कथा 
बांचुंगा गुलाब के संग 
गर मैं आहत होऊं तो क्या 
सह लूंगा मै काँटों का दंश 

6 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना

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  2. बहुत सुंदर रचना....

    iisanuii.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर रचना....

    iisanuii.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. वाह
    अत्यंत सुन्दर

    ReplyDelete
  5. लग रहा है इस ब्लोग से हट नही पाऊंगा
    आपका ये ब्लोग दिल मे कई मकान बनाये जा रहा है

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