ये कौन अशांत चंचल तरुण है आया ये किसका वसनांचल उड़-उड़ के छाया
ये कौन है जिसने अलौकिक नृत्य है किया ये वनांतर अधीर आनंद से मुखरित हुआ
मेरी वीणा ने ये कौन सा सुर बजाया ये कौन जो मेरे में को भाया
इस अम्बर प्रांगन में निस्वर मंजिर गूंज रही है
अनसुनी सी ताल पर पल्लव पुंज करताली बजा रही है
ये किसके पदचाप सुनाने की है आशा
त्रिन-त्रिन को है अर्पण उस पदचाप की भाषा
ये कौन से वन-गंध से समीरण है बंधनहारा
बहुत सुंदर
ReplyDeletebahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
ये तो बहुत ही सुन्दर रचना है....."
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