प्रकाश यदि स्पर्श करे मरे हाय शर्म से
भ्रमर भी यदि पास आये भयातुर आँखे बंद हो जाए
भूमिसात हम हो जाए व्याकुल हुए शर्म से
कोमल तन को पवन जो छुए तन से फिर पपड़ी सा निकले
पत्तों के बीच तन को ढककर खड़े है छुप - छुप के
अँधेरा इस वन में ये रूप की हंसी उडेलूंगी मै सुरभि राशि
इस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर
bahut khub
ReplyDeleteअँधेरा इस वन में ये रूप की हंसी उडेलूंगी मै रूप की हंसी
इस अँधेरे वन के अंक में मर जाउंगी सूख-सूख कर
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/