तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी
वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंगन में
मै पहचाना नही की तुम ही जो आती हो सपनो में
खता मेरी बस इतनी थी की रोका था नही तुमको
समझ मेरी न इतनी थी पकड़ लूं हाथ , भुला जग को
पडेगा आना ही तुमको की तुम ही हो मेरी किस्मत
भला कैसे रहोगी दूर कि तुम ही हो मेरी हिम्मत
कि जब आयेगी हिचकी तुम समझ लेना मै आया हूँ
तुम्हारे सामने दर पे एक दरख्वास्त लाया हूँ
कि संग चलकर तुम मेरी ज़िंदगी को खूब संवारोगी
मेरे जीवन की कडवाहट को तुम अमृत बनाओगी
पनाहों में जो आया हूँ रहम मुझ पर ज़रा करना
अब आओ भी खडा हूँ राह पर निश्चित है संग चलना
painting by M F HUSSAIN
खूबसूरती से लिखे हैं एहसास
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteकविता का एकदम नया एंगल।
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