दुःख तुमने जो दिए
सहा न जाए
सुख मुझसे दूर भागे
रहा न जाए
वंचित हूँ तुम्हारे प्यार से
क्यों समझ ना आये
कटी हूँ मैं जीवन से कैसे
कहा ना जाए
तुम्हारा वो संगसुख
भुलाया ना जाए
वो मृदु स्पर्श प्रेम वचन
क्यों याद आये
वो आलिंगन वो दुःख-सुख में
साथ का किया था वादा
कैसे मै विस्मरण करूँ उन पलों को
वो स्मरण रहेंगे सदा
तुमने अपने दायित्व से
क्यों मूंह फेर लिया
कोई गुप्त कारण है या यूं ही
मुझे रुसवा किया
क्यों ऐसा लगे की तुम
अवश्य लौटोगे
मेरे साथ किया गया वादा
तुम अवश्य निभाओगे
ये जो लोग कहे की जानेवाला
वापस न आये कभी
मै जानूं तुम कोई गया वक्त नही हो
जो लौट न पाओगे
ज़रा इधर भी .....
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सुन्दर अभिव्यक्ति।
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