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Sunday, April 25, 2010

विश्व जब है निद्रा- मग्न गगन है अन्धकार

विश्व जब है निद्रा- मग्न गगन है अन्धकार
कौन ही जो मेरे वीणा के तार पर छेड़ा है झंकार

नयनों से नींद लिया हर उठ-बैठूं शयन छोड़कर
आँखे बिछाए प्रतीक्षा करूँ उसे न देख पाऊँ  
मन में मचा है हाहाकार

गुन-गुन-गुन-गुन गीत से प्राण है भर गया
न जाने कौन सा विपुल वाणी व्याकुल स्वर से बजाया
कौन सी ये वेदना समझ न आये
अश्रुधारा से भर गया हृदय ये
किसे मैं पहनाओं ये मेरा कंठहार

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