भ्रष्टाचार के नाम पर सब बोलना शुरू कर देते है पर कार्यान्वयन की बात पर अन्ना के पिछे पड़ जाते है |पूरे मीडिया मे ये तो छाया रहा की केजरीवाल पर आयकर विभाग का नौ लाख रुपये बकाया है पर कभी ये नही छापा की उन्होने मगसेसे पुरस्कार से 32 लाख रुपये दान मे दिया है | सवाल ये है सरकार क्या दिखना चाहती है की जो मुझसे टकराएगा चूर-चूर हो जाएगा भले ही मुद्दा देश हित मे क्यों ना हो ?इधर कॉंग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह को ये अधिकार किसने दिया की वो अनाप-शनाप कुछ भी बोलते रहेंगे और वो मान्य होगा |भई सवाल ये नही है की किस पार्टी मे कितने भ्रष्ट नेता है बल्कि बात ये है कॉंग्रेस बड़प्पन दिखाए और जनलोकपाल बिल को मंज़ूरी दे दे | अगर पार्टी को अपने नेताओं पर इतना विश्वास है तो किसलिए इतना विरोध ?इधर महँगाई के मुद्दे पर सोनिया गाँधी ने चिंता जताई | सुनकर आश्चर्य होता है की जो महँगाई के लिए ज़िम्मेदार है वो ही घड़ियाली आँसू रो रहीं है | अन्ना टीम पर कीचड़ उछालकर देश वासियों को गुमराह करने की साजिश कामयाब नही होगी ये कोई मेडम को बताए | वैसे तो हमे दिग्विजय सिंह को धन्यवाद कहना चाहिए की उनकी वजह से आने वाले दिनों मे हमे कॉंग्रेस सरकार से मुक्ति मिल जाएगी | वो जितना बोलेंगे देश के हित मे ही रहेगा | कम से कम आम जनता को सरकार के कम-काज के बारे मे पता तो चल रहा है |हालाँकि जनता आज पहले से समझदार हो गयी है | वोट से किसे जिताना है किसे गिराना है ये अच्छी तरह जान चुकी है | पर लगता है सरकार को अभी तक इस बात इल्म नही है |
आदमी वह फिर न टूटे,
वक़्त फिर उसको न लूटे,
जिन्दगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे।
वक़्त फिर उसको न लूटे,
जिन्दगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
गोपालदास "नीरज"