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Tuesday, May 31, 2011

कुछ मनपसंद रचनाये

दख़ल की दुनिया: एक दिन चींटियां ढूढ़ लाएंगी दुनिया के सबसे विलक्षण रहस्य को
हलंत: डायरी से एक बेतरतीब नोट: "डायरी से एक बेतरतीब नोट"
कदम क्यों रुक | कविता: "कदम क्यों रुक"
दिल की कलम से तुमसे मिलने की शिद्दत हुई है कैसी बेवक़्त आफ़त हुई है चाँद है गुमशुदा रात है ग़मज़दा किस से पूंछू पता तेरी खुशबूयों का ये हवा भी तो रुख़सत हुई है तुमसे मिल...





तू कौन है मेरे साथ था तू कब से, मै था या ना था जब से, पृथ्वी,जल और नभ से, मै पूँछता था सब से, तू कौन है,तू कौन है? तुम्ही तो थे बस साथ जब, कोई न था मेरे पास जब, भूला ...










 अमृत पीकर भी है मानव मरा हुआ............ अमृत पीकर भी है मानव मरा हुआ बरसातों में ठूंठ कहीं है हरा हुआ करके गंगा-स्नान धो लिए सारे पाप सोच रहे फिर सौदा कितना खरा हुआ सीमा से ज्यादा जब बढ़ जाती है ...


मेरी तन्हाई मुझसे तन्हाई मेरी ये पूछती है, बेवफ़ाओं से तेरी क्यूं दोस्ती है। चल पड़ा हूं मुहब्बत के सफ़र में, पैरों पर छाले रगों में बेख़ुदी है। पानी के व्यापार में ...


मंज़िल निकल पड़े थे राह पर अकेले, चला किए हम शाम सवेरे ! मंज़िल पर पहुँचने से पहले, राह में ही हम अटक गए ! मंज़िल दूर तक नज़र नहीं आए, लगा जैसे हम रास्ता भ...


गुरूदेव की "नौका डूबी" को "कशमकश" में तब्दील करके लाए हैं संजॉय-राजा..शब्दों का साथ दिया है गुलज़ार ने -Taaza Sur Taal (TST) - 15/2011 - KASHMAKASH (NAUKA DOOBI) कभी-कभार कुछ ऐसी फिल्में बन जाती हैं, कुछ ऐसे गीत तैयार हो जाते हैं, जिनके बारे में आप लिखना तो ...


DAY 1137 Jalsa , Mumbai May 30 , 2011 Mon 10 : 21 PM Okaaaayyyyy !! these are the










Friday, May 27, 2011

पत्तो से टपकती



पत्तो से टपकती वो बारिश की बूंदे
छन से गिरकर वो खिडकी को चूमे
परदे की ओट में छिपता वो बादल
गरजते-बरसते आसमा में झूमे

धरती भी बन जाए  मस्त कलंदर
वो नदियाँ भी बहे जो थे कभी अन्दर
हरी-हरी ज़मी पे मेढ़को का शोर
बाँध पायल जंगल में नाच उठा मोर

कतरा दरिया का बन गया समंदर
नई-नवेली धरती दिखे अति सुन्दर
बरसते बादल को कर लो सलाम
बादल तो चंचल है उसे नही है विराम

जाए कही भी बादल संदेसा ले जाए
बरसो इतना की धरा लहलहाए
मरूभूमि पर भी रखे कृपादृष्टि
लगातार बरसो जहां चाहिए अनवरत वृष्टि

मरू हो जाए शीतल ताप भी कम हो जाए
बंजर धरती भी फसल से लहलहाए
बारिश की बूंदों का अहसान रहेगा
किसानो के चेहरे पर मुस्कान बिखरेगा 


Thursday, May 26, 2011

ये बचपन



बस्तों के बोझ तले दबा हुआ बचपन
बसंत में भी खिल न पाया ये बुझा हुआ बचपन

बचपन वरदान था जो कभी अति सुन्दर
पर अब क्यों लगता है ये जनम - जला बचपन

अपनों से ही पीड़ित क्यों है आज बचपन
ये देन है किस सभ्यता का क्यों खो गया वो बचपन

वो नदियों सा इठलाना चिड़ियों सा उड़ना
वो तितलियों के पीछे वायु वेग सा दौड़ना

वो सद्य खिले पुष्पों सा खिलना इठलाना
वो रह पर पड़े हुए पत्थरों से खेलना

कहाँ है वो बचपन जो छूटे तो पछताए
क्यों है वो परेशां ये बचपन छटपटाये

खिलने से पहले ही मुरझाता ये बचपन
ये शोषित ये कुंठित ये अभिशप्त बचपन




Sunday, May 22, 2011

SWAMI VIVEKANAND SPEECH

Tuesday, May 10, 2011

आँखों से झांकते........


(1)
आँखों से झांकते हुए तुम दिल में उतर गए
हया का पर्दा है जो तुम्हे मुझसे है अलग करता
 (2)
तुम्हे पाने की आरज़ू ने मुझे दीवाना बना दिया
तुम्हारे प्यार को पाना मैंने मकसद बना लिया
तुम्हे न पाने से जो सूरत-ए-हाल होगा सनम
ये सोचना भी दिल गवारा नही करता


          


   

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