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Friday, October 22, 2010

इस पार प्रिये तुम हो


मुझे उस पार…. नहीं जाना ………..क्योंकि इस पार …
मैं तुम्हारी संगिनी हूँ ……..उस पार निस्संग जीवन है
स्वागत के लिए ……………इस पार मैं सहधर्मिणी
कहलाती हूँ ……..मातृत्व सुख से परिपूर्ण हूँ………………..
माता – पिता है …..देवता स्वरुप …….पूजने के लिए
उस पार मै स्वाधीन हूँ ………पर स्वाधीनता का
रसास्वादन एकाकी है……….. गरल सामान……..
इस पार रिश्तों की पराधीनता मुझे ……………….
सहर्ष स्वीकार है…………इस पार प्रिये तुम हो

Tuesday, October 19, 2010

आसमां के पार............


आसमां के पार भी
एक जहां है
जहां नही है प्रेम पर
पहरेदारी
उन्मुक्त पवन है चलती
किसी ने नहीं किया है
प्रदूषित अपने
उत्पाद से
स्वच्छा नदियाँ हिलोरें
मारती, कलकल ध्वनि से
मुखरित सदा बहती
किसी ने बांधा नहीं
है बांधो से
परिंदों को मिला है
मुक्ताकाश उड़ने के लिए
पिंजरा बना नहीं अभी
उस जहां में
पेड़-पौधों को नहीं है डर
कट जाने का
क्योंकि वहाँ महामानव
नहीं अभी आदिमानव
है बसते
उनका सभ्य जगत
में पदार्पण होना
बाकी है

Wednesday, October 13, 2010

नदी में ज्वार.............


नदी में ज्वार आया
पर तुम आये कहाँ
खिडकी दरवाजा खुला है
पर तुम दिखे कहाँ
पेड़ों की डालियों पर
मुझे देख कोयल कूके
पर आज भी तुम दिखे नही
आखिर तुम हो कहाँ
सजी-धजी मंदिर जाऊं
पूजा करूँ सजदा करूँ
कभी तो पसीजोगे तुम
गर दिख जाओ मुझे यहाँ
लोग मुझे देख हँसे
दीवानी लोग मुझे कहे
अश्रु के सैलाब से
भर गया ये जहां

Tuesday, October 12, 2010

मेरे इस रेगिस्तान...............

मेरे इस रेगिस्तान मन में
 बूँद प्यार का गर टपक जाए
  रेत गीली हो जाय
   दिल का दामन भर जाय


    जन्मों से प्यासे इस मन को
     प्यार का जो सौगात मिला
      मन पंछी बन उड़ जाए
       रहे न जीवन से गिला


        जाने क्यों मन भटका जाय
         ढूंढे किसे ये मन बंजारा
          है आवारा बादल की तलाश
           पाकर मन कहे 'मै हारा'


             इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
              आवारापन संभल जाए
               वो बूँद बन जाए बादल का
                और इस सूखे मन में टपक जाए

Friday, October 8, 2010

बचपन की यादे

बचपन की यादो को कैसे भुलाए 
मम्मी की डांट और पापा बचाए 
चुपके से मम्मी से नज़रे चुराकर 
कोमिक्स किताबों के बीच में रखकर 
पढता था खूब पर जब पकड़ा जाता था 
होती थी जमकर धुनाई फिर क्या था 
पर बचपन में बच्चो को शरारत पर हक़ है 
मात देना है माँ को सलाह्कार बहुत है 
माँ के पिटाई के खिलाफ हम एक है 
चिंटू पिंटू राजू पीड़ित अनेक है 
फैसला किया था हमने सब मिलकर 
पीटना नहीं इसबार अड़ना है डटकर 
किसकी हिम्मत है हमपर हाथ उठाये 
पर फैसला ये मम्मी को कैसे बताये 
वैसे तो पापा थे पक्षधर हमारे 
पर मम्मी के आगे थे अलग ही नज़ारे 
समझ आया मम्मी के आगे नही बिसात किसी की 
धरी रह गयी योजना , ये थी यादे बचपन की 

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