मम्मी की डांट और पापा बचाए
चुपके से मम्मी से नज़रे चुराकर
कोमिक्स किताबों के बीच में रखकर
पढता था खूब पर जब पकड़ा जाता था
होती थी जमकर धुनाई फिर क्या था
पर बचपन में बच्चो को शरारत पर हक़ है
मात देना है माँ को सलाह्कार बहुत है
माँ के पिटाई के खिलाफ हम एक है
चिंटू पिंटू राजू पीड़ित अनेक है
फैसला किया था हमने सब मिलकर
पीटना नहीं इसबार अड़ना है डटकर
किसकी हिम्मत है हमपर हाथ उठाये
पर फैसला ये मम्मी को कैसे बताये
वैसे तो पापा थे पक्षधर हमारे
पर मम्मी के आगे थे अलग ही नज़ारे
समझ आया मम्मी के आगे नही बिसात किसी की
धरी रह गयी योजना , ये थी यादे बचपन की
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
ReplyDeleteआपको नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएं .
ReplyDeleteऐसी ही होती हैं बचपन की यादें......बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबचपन पर कितनी प्यारी कविता लिखी आपने......
ReplyDeleteअच्छी .....
याद आते है वो बचपन के दिन,
ReplyDeleteना जाते थे स्कूल दोस्तो के बिन
,
कैसी वो दोस्ती थी कैसा था वो प्यार
,
इक दिन की जुदाई से डरते थे ,
जब आता था शनिवार
चलते चलते पत्थरो मे ठोकर मारते थे
,
कभी हसते गाते तो कभी चलते थे रोकर
कंधो मे किताब लिए हाथ मे बोतल पानी
,
कैसे पता था कि बचपन
की दोस्ती भी चुरा लेंगी जवानी
,
याद आते है वो शाही से रंगे हाथ,
क्या दिन थे वो जब करते थे लंच साथ
छुट्टी की घण्टी बजते ही वो भाग के कमरे से
बाहर आना ,
फिर हसते हसते दोस्तो से मिल जाना
काश वो दोस्ती आज भी जाती और दिल मे फिर
से बचपन के फुल खिल जाते|
सावँगी की वादियो मे गुजारा बचपन दिन"