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Friday, October 8, 2010

बचपन की यादे

बचपन की यादो को कैसे भुलाए 
मम्मी की डांट और पापा बचाए 
चुपके से मम्मी से नज़रे चुराकर 
कोमिक्स किताबों के बीच में रखकर 
पढता था खूब पर जब पकड़ा जाता था 
होती थी जमकर धुनाई फिर क्या था 
पर बचपन में बच्चो को शरारत पर हक़ है 
मात देना है माँ को सलाह्कार बहुत है 
माँ के पिटाई के खिलाफ हम एक है 
चिंटू पिंटू राजू पीड़ित अनेक है 
फैसला किया था हमने सब मिलकर 
पीटना नहीं इसबार अड़ना है डटकर 
किसकी हिम्मत है हमपर हाथ उठाये 
पर फैसला ये मम्मी को कैसे बताये 
वैसे तो पापा थे पक्षधर हमारे 
पर मम्मी के आगे थे अलग ही नज़ारे 
समझ आया मम्मी के आगे नही बिसात किसी की 
धरी रह गयी योजना , ये थी यादे बचपन की 

5 comments:

  1. बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

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  2. आपको नवरात्र की ढेर सारी शुभकामनाएं .

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  3. ऐसी ही होती हैं बचपन की यादें......बहुत अच्छी रचना

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  4. बचपन पर कितनी प्यारी कविता लिखी आपने......

    अच्छी .....

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  5. याद आते है वो बचपन के दिन,
    ना जाते थे स्कूल दोस्तो के बिन
    ,
    कैसी वो दोस्ती थी कैसा था वो प्यार
    ,
    इक दिन की जुदाई से डरते थे ,
    जब आता था शनिवार
    चलते चलते पत्थरो मे ठोकर मारते थे
    ,
    कभी हसते गाते तो कभी चलते थे रोकर
    कंधो मे किताब लिए हाथ मे बोतल पानी
    ,
    कैसे पता था कि बचपन
    की दोस्ती भी चुरा लेंगी जवानी
    ,
    याद आते है वो शाही से रंगे हाथ,
    क्या दिन थे वो जब करते थे लंच साथ
    छुट्टी की घण्टी बजते ही वो भाग के कमरे से
    बाहर आना ,
    फिर हसते हसते दोस्तो से मिल जाना
    काश वो दोस्ती आज भी जाती और दिल मे फिर
    से बचपन के फुल खिल जाते|
    सावँगी की वादियो मे गुजारा बचपन दिन"

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