मेरे इस रेगिस्तान मन में
बूँद प्यार का गर टपक जाए
रेत गीली हो जाय
दिल का दामन भर जाय
जन्मों से प्यासे इस मन को
प्यार का जो सौगात मिला
मन पंछी बन उड़ जाए
रहे न जीवन से गिला
जाने क्यों मन भटका जाय
ढूंढे किसे ये मन बंजारा
है आवारा बादल की तलाश
पाकर मन कहे 'मै हारा'
इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
आवारापन संभल जाए
वो बूँद बन जाए बादल का
और इस सूखे मन में टपक जाए
बूँद प्यार का गर टपक जाए
रेत गीली हो जाय
दिल का दामन भर जाय
जन्मों से प्यासे इस मन को
प्यार का जो सौगात मिला
मन पंछी बन उड़ जाए
रहे न जीवन से गिला
जाने क्यों मन भटका जाय
ढूंढे किसे ये मन बंजारा
है आवारा बादल की तलाश
पाकर मन कहे 'मै हारा'
इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
आवारापन संभल जाए
वो बूँद बन जाए बादल का
और इस सूखे मन में टपक जाए
बहुत अच्छी कविता है।
ReplyDeleteपढकर बहुत अच्छा लगा
हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
मालीगांव
साया
लक्ष्य
प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteसुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
beautiful poem with awesome thoughts... well execution...
ReplyDeletebeautiful poem mam...
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