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Monday, June 27, 2011

देस-विभाजन- हरिवंशराय बच्चन

सुमति स्वदेश छोड़कर चली गई,
ब्रिटेन-कूटनीति से छलि गई,
अमीत, मीत; मीत, शत्रु-सा लगा,
अखंड देश खंड-खंड हो गया।

स्वतंत्रता प्रभात क्या यही-यही!
कि रक्त से उषा भिगो रही मही,
कि त्राहि-त्राहि शब्द से गगन जगा,
जगी घृणा ममत्व-प्रेम सो गया।

अजान आज बंधु-बंधु के लिए,
पड़ोस-का, विदेश पर नज़र किए,
रहें न खड्ग-हस्त किस प्रकार हम,
विदेश है हमें चुनौतियां दिए,
दुरंत युद्ध बीज आज बो गया।

Friday, June 24, 2011

ज़िन्दगी से.............


ज़िन्दगी  से बस यूं ही
चन्द बातें हुई
चमन में आये बहार से
एक मुलाकात हुई

जलते चिरागों तले
रोशनी नहीं होती
चिराग  तले अँधेरे में
ज़िन्दगी दीदार हुई

हर तरफ भीड़ है
हर शख्स है परेशान
इस दुनिया  में ज़िन्दगी
तू ही है तनहा खडी






Tuesday, June 7, 2011

धुन

 


सुनकर  तेरीबंसी की धुन 
मत्त हुआ ये बावरा मन 
आज प्रभात की बेला में 
तेरा ये मधुर सुर सुन 
खोल कर रख दिया ये मन 
ये अंतर्मन तुझे समर्पण 
प्रकाश पुंज से उद्वेलित समीरन
तेरे सुर की लीला है नवीन 
बजे शरद की आकाशवीणा 
माला बना लूं पिरोकर वो धुन 
तुझे समर्पित है जीवन मम 
प्रकाश तेरा है निरुपम 
भोर की पक्षी भी करे गुंजन 
तुम्हारी धुन को मेरा वंदन 

मेरी गली से.....


मेरी गली से जब भी गुजरीं वो
खुशबू का सैलाब सा बह गया
रूह तक पहुंची वो खुशबू-ए-उल्फत
मुहब्बत का तकाजा बढ़ गया
दिल के दामन में आकर
धूम मचाकर रख दिया
सपनो में भी चैन न आया
वो आयी और मै दीवाना हो गया
इश्क जब सर पर चढ़ा
बेवफा चिड़िया सी फुर्र हुई
अब तो ये हाल है जानम
मालूम नहीं कब दिन हुआ कब रात हुई

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