सुमति स्वदेश छोड़कर चली गई,
ब्रिटेन-कूटनीति से छलि गई,
अमीत, मीत; मीत, शत्रु-सा लगा,
अखंड देश खंड-खंड हो गया।
स्वतंत्रता प्रभात क्या यही-यही!
कि रक्त से उषा भिगो रही मही,
कि त्राहि-त्राहि शब्द से गगन जगा,
जगी घृणा ममत्व-प्रेम सो गया।
अजान आज बंधु-बंधु के लिए,
पड़ोस-का, विदेश पर नज़र किए,
रहें न खड्ग-हस्त किस प्रकार हम,
विदेश है हमें चुनौतियां दिए,
दुरंत युद्ध बीज आज बो गया।
ब्रिटेन-कूटनीति से छलि गई,
अमीत, मीत; मीत, शत्रु-सा लगा,
अखंड देश खंड-खंड हो गया।
स्वतंत्रता प्रभात क्या यही-यही!
कि रक्त से उषा भिगो रही मही,
कि त्राहि-त्राहि शब्द से गगन जगा,
जगी घृणा ममत्व-प्रेम सो गया।
अजान आज बंधु-बंधु के लिए,
पड़ोस-का, विदेश पर नज़र किए,
रहें न खड्ग-हस्त किस प्रकार हम,
विदेश है हमें चुनौतियां दिए,
दुरंत युद्ध बीज आज बो गया।
एक बेहतरीन कविता पढवाने का शुक्रिया।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteअच्छी रचना के लिए आभार. हिंदी लेखन के क्षेत्र में आप द्वारा किये जा रहे प्रयास स्वागत योग्य हैं.
ReplyDeleteआपको बताते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है की भारतीय ब्लॉग लेखक मंच की स्थापना ११ फरवरी २०११ को हुयी, हमारा मकसद था की हर भारतीय लेखक चाहे वह विश्व के किसी कोने में रहता हो, वह इस सामुदायिक ब्लॉग से जुड़कर हिंदी लेखन को बढ़ावा दे. साथ ही ब्लोगर भाइयों में प्रेम और सद्भावना की बात भी पैदा करे. आप सभी लोंगो के प्रेम व विश्वाश के बदौलत इस मंच ने अल्प समय में ही अभूतपूर्व सफलता अर्जित की है. आपसे अनुरोध है की समय निकलकर एक बार अवश्य इस मंच पर आये, यदि आपको मेरा प्रयास सार्थक लगे तो समर्थक बनकर अवश्य हौसला बुलंद करे. हम आपकी प्रतीक्षा करेंगे. आप हमारे लेखक भी बन सकते है. पर नियमो का अनुसरण करना होगा.
भारतीय ब्लॉग लेखक मंच