मेरे इस रेगिस्तान मन में
बूँद प्यार का गर टपक जाए
रेत गीली हो जाय
दिल का दामन भर जाय
प्यार का जो सौगात मिला
मन पंछी बन उड़ जाए
रहे न जीवन से गिला
जाने क्यों मन भटका जाय
ढूंढे किसे ये मन बंजारा
है आवारा बादल की तलाश
पाकर मन कहे 'मै हारा'
इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
आवारापन संभल जाए
वो बूँद बन जाए बादल का
और इस सूखे मन में टपक जाए
इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
ReplyDeleteआवारापन संभल जाए
वो बूँद बन जाए बादल का
और इस सूखे मन में टपक जाए
बहुत ही सुंदर पंक्तियां...
http://veenakesur.blogspot.com/
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सही कहा, मन बंजारा है, इधर-उधर भागता रहता है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteअलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
very nice, thanks !
ReplyDeletesunder abhivykti.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति ।
ReplyDeletebahoot hi ahchhi ummid.... jaroor puri ho
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति .धन्यवाद
ReplyDeleteइतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
ReplyDeleteआवारापन संभल जाए
वो बूँद बन जाए बादल का
और इस सूखे मन में टपक जाए
बहुत ही सुंदर ...