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Friday, April 21, 2017

हंसराज रहबर की पुस्तक 'नेहरू बेनकाब' का अंश क्रमशः -1

* "मोतीलाल का जन्म पिता की मृत्यु के तीन महीने बाद 6 मई, 1861 को आगरा में हुआ। 1857 के बाद बहुत - से परिवार दिल्ली छोड़कर इधर-उधर चले गए थे। इसी हलचल में नेहरू परिवार भी दिल्ली से आगरा चला आया था। मोतीलाल के दो भाई और थे, जो उम्र में इतने बड़े थे कि मोतीलाल के जन्म के समय वे दोनों जवान थे। अब उन लोगों ने फारसी के साथ अंग्रेजी पढ़ना शुरू कर दिया था। दिल्ली से आगरा आते समय कुछ अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया था। दोनों भाइयों की अंग्रेजी शिक्षा और वंशगत राजभक्ति के कारण ही परिवार की जान बची थी। आगरा पहुंचने के थोड़े ही दिन बाद मोतीलाल के बड़े भाई बंसीधर ब्रिटिश सरकार के न्याय-विभाग में नौकर हो गये। नौकरी के कारण जगह - जगह उनका तबादला होता रहता था, जिससे परिवार के साथ उनका संबंध कट - सा गया। जवाहरलाल के छोटे ताऊ नंदलाल नेहरू राजपूताना की एक छोटी-सी रियासत खेतड़ी के कोई दस साल तक दीवान रहे। बाद में उन्होंने नौकरी छोड़कर कानून पढ़ा और आगरे में वकालत शुरू कर दी। जब हाईकोर्ट आगरा से इलाहाबाद चला गया तो नेहरू - परिवार भी इलाहाबाद में जा बसा। मोतीलाल नेहरू का लालन-पालन इसी दूसरे भाई नंदलाल नेहरू ने किया। बच्चों में सबसे छोटे होने के कारण मोतीलाल स्वभावतः मां के लाडले थे। जवाहरलाल ने 'मेरी कहानी' में दादी का यह शब्द - चित्र प्रस्तुत किया है :"वह बूढ़ी थीं और बड़ी दबंग थीं। किसी की ताब नहीं थी कि उनकी बात को टाले। उनको मरे अब पचास वर्ष हो गए होंगे, मगर बूढ़ी कश्मीरी स्त्रियां अब भी उनको याद करती हैं और कहती हैं कि वह बड़ी जोरदार औरत थीं। अगर किसी ने उनकी मर्जी के खिलाफ कोई काम किया तो बस मौत ही समझिए।"(हंसराज रहबर की उपरोक्त उल्लेखित पुस्तक  के Chapter 'पुरखे' का अंश क्रमशः)*

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