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Tuesday, October 19, 2010

आसमां के पार............


आसमां के पार भी
एक जहां है
जहां नही है प्रेम पर
पहरेदारी
उन्मुक्त पवन है चलती
किसी ने नहीं किया है
प्रदूषित अपने
उत्पाद से
स्वच्छा नदियाँ हिलोरें
मारती, कलकल ध्वनि से
मुखरित सदा बहती
किसी ने बांधा नहीं
है बांधो से
परिंदों को मिला है
मुक्ताकाश उड़ने के लिए
पिंजरा बना नहीं अभी
उस जहां में
पेड़-पौधों को नहीं है डर
कट जाने का
क्योंकि वहाँ महामानव
नहीं अभी आदिमानव
है बसते
उनका सभ्य जगत
में पदार्पण होना
बाकी है

2 comments:

  1. बिम्बों में आपने गहरी बात कह दी। अज्ञेय जी कि सांप कविता का स्मरण हो आया!

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  2. यह तो खूबसूरत ख्वाब है

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