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Friday, October 22, 2010

इस पार प्रिये तुम हो


मुझे उस पार…. नहीं जाना ………..क्योंकि इस पार …
मैं तुम्हारी संगिनी हूँ ……..उस पार निस्संग जीवन है
स्वागत के लिए ……………इस पार मैं सहधर्मिणी
कहलाती हूँ ……..मातृत्व सुख से परिपूर्ण हूँ………………..
माता – पिता है …..देवता स्वरुप …….पूजने के लिए
उस पार मै स्वाधीन हूँ ………पर स्वाधीनता का
रसास्वादन एकाकी है……….. गरल सामान……..
इस पार रिश्तों की पराधीनता मुझे ……………….
सहर्ष स्वीकार है…………इस पार प्रिये तुम हो

1 comment:

  1. इससे सुखमय और क्या होगा...

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