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Monday, March 15, 2010

उम्मीदों और नये संकल्पों का दिन नवसंवत्सर - HindiLok.com

उम्मीदों और नये संकल्पों का दिन नवसंवत्सर

डॉ० रवीन्द्र नागर

संसार में सभी नववर्ष का स्वागत और हार्दिक अभिनन्दन अपने-अपने ढंग से करते हैं। भारत में एवं विदेशों में संवत्सर को अत्यन्त उत्साह, नवीन संकल्प एवं आशा के साथ मनाते हैं।

संवत्सर का शुभारंभ वैज्ञानिक और प्राकृतिक ढंग से हुआ है। महाराजा विक्रमादित्य ने भारत-भूमि को विदेशियों से मुक्त करने के पश्चात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से इस संवत्सर को प्रारंभ किया, इसलिए इसे विक्रम संवत्सर कहते हैं। इस वर्ष २०६७ वाँ संवत्सर है, जो 16 मार्च से आरंभ हो रहा है। यह दिन सृष्टि का आदि दिन भी है। सतयुग इसी दिन से प्रारंभ हुआ था। इसी दिन भारत में कालगणना का प्रारम्भ हुआ था। ब्रह्म पुराण में कहा गया है –

चैत्रे मासि जगत् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।
शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति॥

अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपद को सूर्योदय होने पर पहले ब्रह्मा ने जगत की सृष्टि की थी। उन्होंने प्रतिपद को प्रवरा तिथि भी घोषित किया था।

तिथीनां प्रवरा यस्माद् ब्रह्मणा समुदाहृता।
प्रतिपद्यापदे पूर्वे प्रतिपत् तेन सोच्यते॥

ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि का आरंभ किया, उस समय इसको प्रवरा अथवा सर्वोत्तम तिथि सूचित किया था। सचमुच यह प्रवरा है भी। इसमें धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक और सांस्कृतिक आदि बहुत-से महत्व के कार्य आरम्भ किये जाते हैं। इसमें संवत्सर का पूजन, नवरात्र घट स्थापना, ध्वजारोहण, वर्षेश का फल-पाठ आदि अनेक लोक-प्रसिद्ध और पवित्र कार्य होते हैं। इसी दिन मत्स्यावतार हुआ था।

कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुभफल पक्षगा।
मत्स्य रूप कुमार्याच अवतीर्णो हरिः स्वयम्॥

मान्यता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने दक्षिण प्रदेश को बालि के अत्याचारों से मुक्त किया था। इससे इसे स्वतन्त्रता का दिन माना जाता है। ध्वजारोहण की प्रथा इसी का प्रतीक है। संवत्सर की प्रथम तिथि को पर्व रूप में मनाने की प्रथा बहुत प्राचीन है। अथर्ववेद में कहा गया है –

संवत्सरस्य प्रतिमां यां त्वां त्र्युपास्महे।
सा न आयुष्मती प्रजा रायस्पोषणे संसृज॥

संवत्सर की प्रतिमा स्वरूप हम जिस प्रभु की उपासना करते हैं, वह हमें दीर्घायु वाली प्रजा और धन से युक्त करे। शतपथ ब्राह्मण और विविध पुराणों में भी इसका उल्लेख है। तदनुसार इस संवत्सर के प्रारंभ काल से ही भारतीय सर्वत्र संवत्सर महोत्सव मनाते हैं। उत्सव चन्द्रिका नामक ग्रंथ में लिखा है –

प्राप्ते नूतन वत्सरे प्रति गृहं कुर्याद् ध्वजारोपणम्।
स्नानं मंगलमाचरेत् द्विज वरैः साकं सुपूजोत्सवैः॥
देवानां गुरू योषितां च विभवालंकार वस्त्रादिभिः।
संपूज्यो गणकः फलं च श्रुणुयात् तस्माच्च लाभप्रदम्॥

अर्थात नूतन वर्ष आने पर प्रत्येक घर में ध्वजारोहण, स्नान, मंगल, पूजन, उत्सव आदि करना चाहिए। देवताओं का पूजन और बड़े लोगों का सत्कार होना चाहिए। विद्वानों से संवत्सर का फल जानना चाहिए। अपने घर को तोरण वन्दनवार से सजाकर मंगल कार्य आरम्भ करना चाहिए। नववर्ष वासंतिक नवरात्र का भी पहला दिन है, अतः कलश-स्थापन आदि किया जाता है।

श्रद्धालु नूतन वर्ष का फल , राशि फल सुनते हैं। मिट्टी के घड़े, सुराही आदि शीतल जल के उपयोग के निमित्त देते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नीम की पत्ती के साथ मिश्री मिलाकर उसके भक्षण का भी विधान है। आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में होने वाली व्याधियों के शमन के लिए ये वस्तुएँ बहुत गुणकारिणी हैं। ग्रीष्म के रक्तज विकारों की शान्ति के लिए तो ये बहुमूल्य औषधियाँ हैं।
भारतीय संस्कृति समन्वय और अनेकता में एकता की पक्षधर है। संवत्सर को पूरे देश में भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्णाटक आदि राज्यों में इसे गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है।

प्रातः उठकर भगवान की अर्चना, बड़ों को प्रणाम और सभी को अभिनन्दन करने के बाद घर के बाहर एक ध्वजा और नवीन वस्त्र की पताका लगाने का विधान है। मिश्री एवं नीम की पत्तियाँ परिवार के सदस्यों के साथ भक्षण की विधि है। इसका भाव यह है कि पूरे वर्ष में हम मीठी-कड़वी, सफलता-असफलता, लाभ-हानि, यश-अपयश सब बातों को सहन करने के लिए तैयार रहें। द्वार एवं चौराहों पर रंगोली बनायी जाती है।

आन्ध्र प्रदेश में इसे उगादि के नाम से जाना जाता है। उगादि का अर्थ है युगादि। युग अर्थात वर्ष का आदि-प्रथम दिवस। भिन्न-भिन्न पदार्थों के साथ भगवान को प्रणाम करने का और सबको अभिवादन करने की परंपरा है। घर के बाहर तुलसी-पूजा की जाती है। तमिलनाडु में इस दिन को वर्षापिरप्पु कहते हैं। भगवान की आराधना कर नारियल तथा ऋतु की वस्तुएँ समर्पित की जाती हैं। बहनें घर के बाहर सात रंगों से अल्पना बनाकर नववर्ष का स्वागत करती हैं। केरल में इस दिन को विषु कहते हैं। केले के वृक्ष और विभिन्न फलों से नववर्ष का स्वागत किया जाता है। घर के सदस्य मिलकर वनस्पति देवता की अर्चना करते हैं और पूरे परिवार के लिए मंगल-कामना करते हैं।

बंगाल में इसे नववर्षम् कहा जाता है। माँ काली की वंदना और संगीत के साथ नववर्ष के स्वागत की परम्परा है। असम में बिहु से नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है। परिवार के सदस्य नवीन वस्त्र धारण करके सबका अभिनंदन करते हैं। परस्पर उपहार देते हैं। कश्मीर में इस दिन को नवरे के नाम से जाना जाता है। नवरे का अर्थ है नवीन दिवस। घर की महिलाएँ थाली में सूखे मेवों के साथ धूप-दीप रखकर परिवार के सभी सदस्यों को दिखाती हैं और भगवान से सभी के लिए स्वास्थ्य की कामनाकरती हैं।

उत्तर भारत में चैत्र नवरात्रि के इस प्रथम दिवस पर घट-स्थापन, पूजन-अर्चन की विधि संपन्न की जाती है। सम्पूर्ण भारत में संवत्सर नवीन आशा, उत्साह, सद्भाव, प्रेम, विनम्रता, सहजता और शालीनता का संचार करता है

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