तारा टूटा है दिल तो नही
चहरे पर छाई ये उदासी क्यों
इनकी तो है बरात अपनी
तुम पर छाई ये विरानी क्यों
न चमक अपनी इन तारों की
न रोशनी की राह दिखा सके
दूर टिमटिमाती इन तारों से
तुम अपना मन बहलाती क्यों
कहते है ये टूटते तारे
मुराद पूरी करता जाय
पर नामुराद मन को तेरी
टूटते हुए छलता जाए क्यों
मत देखो इन नक्षत्रों को
इसने सबको है भरमाया
गर देखना ही है देखो उसे
जो अटल अडिग वो है 'ध्रुवतारा'
very nice and touchy
ReplyDeletekam shabdon men bahut badee baat likhee hai
मत देखो इन नक्षत्रों को
इसने सबको है भरमाया
गर देखना ही है देखो उसे
जो अटल अडिग वो है 'ध्रुवतारा
sundar bhaav prastuti.
ReplyDeleteग़ालिब की मगर मुश्किल ये है, की बहुत निकले अरमाँ मगर फिर भी कम निकले!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.