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Sunday, August 29, 2010

'ध्रुवतारा'


तारा टूटा है दिल तो नही 
चहरे पर छाई ये उदासी क्यों 
इनकी तो है बरात अपनी 
तुम पर छाई ये विरानी क्यों 


न चमक अपनी इन तारों की 
न रोशनी की  राह दिखा सके 
दूर टिमटिमाती इन तारों से 
तुम अपना मन बहलाती क्यों 
कहते है ये टूटते तारे 
मुराद पूरी करता जाय 
पर नामुराद मन को तेरी 
टूटते हुए छलता  जाए क्यों 


मत देखो इन नक्षत्रों को 
इसने सबको है भरमाया 
गर देखना ही है देखो उसे 
जो अटल अडिग वो है 'ध्रुवतारा'

3 comments:

  1. very nice and touchy
    kam shabdon men bahut badee baat likhee hai
    मत देखो इन नक्षत्रों को
    इसने सबको है भरमाया
    गर देखना ही है देखो उसे
    जो अटल अडिग वो है 'ध्रुवतारा

    ReplyDelete
  2. ग़ालिब की मगर मुश्किल ये है, की बहुत निकले अरमाँ मगर फिर भी कम निकले!

    सुन्दर अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete

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