ये रोशनी
भी न जाने क्या-क्या
गुल खिलाती है
कभी सूरज
की किरण और कभी
चन्दा की चांदनी
कहलाती है (२)
सूरज की तो क्या कहे हम
आता है उषा के साथ
जाता है संध्या के साथ
सोता है निशा के साथ
उठता है किरण के साथ
रहता है रौशनी के साथ
और छुपता है
वर्षा के साथ ~ ~ ~
जाता है संध्या के साथ
सोता है निशा के साथ
उठता है किरण के साथ
रहता है रौशनी के साथ
और छुपता है
वर्षा के साथ ~ ~ ~
कभी कभी बादल के साथ भी छुपा पाया जाता है, बड़ा खतरनाक मिजाज रखता है ये सूरज तो !
ReplyDeleteबड़ी creative कविता है !