Followers

Saturday, June 5, 2010

बदलती तस्वीर

ये है दुनिया की बदलती तस्वीर


कभी था आपस में सद्भाव
परिवार में था एका नहीं था टकराव
बच्चों से रहता था घर  गुलज़ार
क्यों न हो होता था जो संयुक्त परिवार


पर ये तो रही बीते दिनों की बात
अब तो परिवार शतरंज बिछते है बिसात
कौन किसको पछाड़े और बिगाड़े बनते हुए बात
भाई भाई का दुश्मन पसंद नहीं एक दुसरे का साथ


मशीनों ने ले ली इंसानों का स्थान
हृदय है संवेदनहीन  बेदिल बेजान


चिट्ठियां समेटती थी माटी की खुशबू
पर अब तो यंत्रों पर रहा न काबू
अनजान लोगो से बढाते है रिश्ता
टूटता है तो टूटे अपनों से नाता
आखिर क्या जरूरत रह गयी है अपनों की
बढ़ता है दायित्व मै तो चलूँ बचता बचाता

6 comments:

  1. वर्तमान सामाजिक परिस्थिति की की खूबसूरत चर्चा इस बदलती तस्वीर के बहाने। सुन्दर।

    नीचे से ऊपर की ओर तीसरी पंक्ति मे "ती" को समझ न पाया।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. मशीनो ने ले ली है इंसानो का स्थान
    हृदय है ....
    सुन्दर भाव
    आपके ब्लाग पर लिखी पंक्तियाँ एक दूसरे पर चढ जा रही हैं पढने में परेशानी हो रही है

    ReplyDelete
  3. iss daur ki sachchaai ko bayaan kar diyaa. is kavitaa ke liye sadhvaad.

    ReplyDelete
  4. bahut khub



    फिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई

    ReplyDelete
  5. अद्भुत सुन्दर रचना! कमाल कर दिया है आपने! इतना ही कहूँगी की आपकी लेखनी को सलाम!

    ReplyDelete
  6. वाह ! कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ... मन मोह लिया

    ReplyDelete

comments in hindi

web-stat

'networkedblogs_

Blog Top Sites

www.blogerzoom.com

widgets.amung.us