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Saturday, July 24, 2010

छोटा सा,एक रत्ती ,चूहा.........

  छोटा सा,एक रत्ती ,चूहा एक नन्हा 
आँखे अभी खुली नही एकदम काना 

टूटा एक दराज का जाली से भरा कोने में 
माँ के सीने से चिपक कर उनकी बाते सुने रे 

जैसे ही उसकी बंद आँखे खुली दराज के अन्दर 
देखा बंद है कमरा उसका लकड़ी का है चद्दर 

खोलकर अपने गोल-गोल आँखे देख दराज को बोला 
बाप  रे बाप!ये धरती सचमुच है कितना ss बड़ा 

कवी सुकुमार राय द्वारा रचित कविता का अनुवाद
इस  कविता  में  एक  सद्यजात चूहे की मनस्थिति का वर्णन किया गया है कोई भी बच्चा जनम लेने के पश्चात धीरे धीरे देखना शुरू करता है जनम के तुरंत बाद आँखे नही खुलती खुलती है तो देखने की क्षमता नही होती .इस कविता में इसी स्थिती का वर्णन किया गया है की जब उसकी आँखे खुली और देखना शुरू किया तो वो छोटा सा दराज़ भी बहुत बड़ा लगने लगा . 

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