निजु भाषा उन्नति अह़े सब उन्नति के मूल
बिनु निजु भाषा ज्ञान के मिटे न हिय के शूल
--- "भारतेंदु हरिश्चंद "----
अब प्रस्तुत है मेरी लिखी एक कविता :
तेरी अधरों की मुस्कान
देखने को हम तरस गए
घटाए भी उमड़-घुमड़ कर
यहाँ वहाँ बरस गए
पर तेरी वो मुस्कान
जो होंठों पर कभी कायम था
पता नहीं क्यों किस जहां में
जाकर सिमट गए
तेरी दिल की पुकार
सुनना ही मेरी चाहत है
प्यार की कशिश को पहचानो
ये दिल तुझसे आहत है
मुस्कुराना गुनाह तो नहीं
ज़रिया है जाहिर करने का
होंठो से न सही इन आँखों से
बता दो जो दिल की छटपटाहट है
Aaj se lag bhag 30 saal pehle maine aisa kuch likha tha-
ReplyDeleteHindi sammelan ka khel yeh dekho
'We want Hindi' ka nara lagate!