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Wednesday, March 2, 2011

जटा में विराजे ...

जटा  में विराजे गंग 
 गले में लिपटे भुजंग
  मृग चर्म से लिपटी है
   नीलकंठ की कटी


भस्म चर्चित है ये काया
 हाथ डमरू डमडमाया
  रसातल औ स्वर्ग मर्त्य 
    गूंजे है चहुँ दिशा





नृत्य उनका मन को मोहे
 नटराज स्वरुप वो है
   शरणागत हम है उनके 
      स्वरुप ये मन को भाया


कर लो स्तुति शंकर की 
 पा लो वर अपने मन की
   हर हर हर महादेव 
     समर्पित है ये काया

मेरी ही पुरानी रचना से उद्धृत 

1 comment:

  1. बहुत सुंदर ........आपको भी शिवरात्रि ढेरों की शुभकामनायें

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