रवि के होते नौ दो ग्यारह रूचि के तो हो गए पौ बारह
छू मंतर हो गयी दुःख सारे हुई खत्म नकली ये प्यार का खेल
खरी खोटी सुनाया जम के रूचि गिरगिट रवि का रंग बदल गया
उसको तो किनारा करना था वह टाल-मटोल कर निकल गया
रूचि के दुनिया में बहार आयी आँखों का पर्दा सिमट गया
उसे तजने को जो ठानी थी जीना उसका भी खुश्वार हुआ
मेरी ये पंक्ति कविता नहीं ये मुहावरों का मेला है
जो कोई गलती दिख जाये ठीक करें आप का स्वागत है
छू मंतर हो गयी दुःख सारे हुई खत्म नकली ये प्यार का खेल
खरी खोटी सुनाया जम के रूचि गिरगिट रवि का रंग बदल गया
उसको तो किनारा करना था वह टाल-मटोल कर निकल गया
रूचि के दुनिया में बहार आयी आँखों का पर्दा सिमट गया
उसे तजने को जो ठानी थी जीना उसका भी खुश्वार हुआ
मेरी ये पंक्ति कविता नहीं ये मुहावरों का मेला है
जो कोई गलती दिख जाये ठीक करें आप का स्वागत है
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