सुरज ने कहा यदि हम न उगें तो रत्रि कि कौन भगाए चन्दा ये कहे यदि मै न आऊँ कवि मन को कौन उकसाये धरती ये कहे यदि न चलूँ तो क्या सूरज क्या चन्दा दोनों ही है व्यर्थ बस मैं हूँ समर्थ भार लेती हूँ जन जन का पशू – पक्षी कहे छोडो उनको उनका तो है लड़ना काम कभी चन्द्र ग्रहण कभी सूर्य ग्रहण भूकम्प करे काम तमाम यदि हुम न रहे सूरज न उगे चन्दा की तो क्या है बिसात धरती की सारी सुन्दरता पर छायी है अपनी जमात मानव ये कहे क्यों ये झगड़े कभी सुन लो हमारी भी बात अस्तित्व तुम्हारी तभी तक है जब हुम सुने ये फ़रियाद पेड़-पौधे कहे मुझे नष्ट न करो मानव हम पेड़ उगाये धरती ये कहे मुझे मत बाँटो मानव फ़िर दोस्ती बढ़ाये पशू –पक्षी कहे हमें मत मारो मानव हम उनको बचाये हम ही तो है सबके रक्षक क्या हो यदी भक्षक बन जाये सच तो है धरा सूरज चन्दा पशू पक्षी और हम इन्सां सब एक दूजे के पूरक है उनमे न हो कोइ हिंसा
No comments:
Post a Comment