बहुत दूर न चल सका
बदला राह
क्या कभी मेरे फूलों में
गुथेंगी माला तुम्हारे नाम का
बनेगा हार
तुम्हारी बंसी बजे दूर हवा में
रोते हुए वो किसे पुकारे
चलते-चलते मैं थक गया
बैठा राह किनारे
तरू छाया में
दर्द छिपा है साथी खोने का
किसे मैं कहूं ये मन कि व्यथा
राह पकड़ चला पथिक
अपने पथ पर, मुझे छोड़कर
मेरी राह है सबसे जुदा
बेहतर...
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