बस्तों और किताब ने मिलकर
बचपन खो डाला
माता-पिता के दबाव ने मिलकर
बचपन धो डाला
समाज के कुरीतियों ने तो
शोषण कर डाला
प्रशासन की अकर्मण्यता ने तो
सेंध लगा डाला
सरकार की ढुलमुल नीतियों ने तो
महंगाई कर डाली
विरोधियों की राजनीति ने तो
नक्सल बना डाला
पडोसी देश के हुज्जत ने तो
नीद उड़ा डाली .
कोई आश्चर्य नही की इन सबने
देश बेच डाला
बहुत ही अच्छी व बेदना से भरी कविता ... इंसानियत की दुर्दशा कर दी है हमारे देश के भ्रष्ट नेताओं ने ...
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