इन्होंने अमेरिका में ग्रीन बैंड टेलिस्कोप (जीबीटी) के जरिए उपग्रह के सिग्नलों में हस्तक्षेप की समस्या को खत्म किया था। अब वे ब्रिटिश जॉडरेल बैंक ऑब्जरवेटरी की उसी समस्या का निदान बताएँगे।
डॉ. पाल ने इस तरह के फिल्टर विकसित किए हैं, जो सिग्नल के डिस्टर्बंस को होने नहीं देते हैं। ये सिग्नल उपग्रह से 485 फीट ऊपर जीबीटी रेडियो टेलिस्कोप से आते हैं। इसके लिए दो अत्यधिक क्षमता के हाई टेम्परेचर सुपरकंडटिंग (एचटीएस) बैंडस्टॉप फिल्टर्स लगाए थे। उन्होंने समस्या हल करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक कम्पोनेंट भी लगाए थे। तब वे ब्रिटेन की बर्मिंघम विवि से डॉक्टरेट के बाद एक शोध कर रहे थे।
अमेरिका के पश्चिम वर्जिनिया में पोकाहंतास काउंटी में पूर्ण रूप से घूमने वाला रेडियो टेलिस्कोप फिल्टरों के लगाने पर बेहतर तरीके से काम करने लगा था। डॉ. पाल झारखंड में स्थित बिरसा प्रौद्योगिकी संस्थान, मेरसा में प्रोफेसर हैं। वे जॉडरेल बैंक ऑब्जर्वेटरी के लिए फ्रीक्वेंसी बेंडपास पर काम कर रहे हैं।
यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टीयरेबल रेडियो टेलिस्कोप है। फिल्टर से निश्चित मात्रा की आवृत्ति जा सकेगी और अवरोध हट जाएगा। उन्होंने बताया कि जब मैं बर्मिंघम के विवि में अगली बार जाऊँगा तब इसका परीक्षण
करूँगा। इसी विवि ने हाल ही में उनको ऑनररी रिसर्च फैलो बनाया है।
समाचार वेब दुनिया साभार
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