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Saturday, August 21, 2010

नज़्म

            (1)
चाँद खिला पर रौशनी नही आयी
रात बीती पर दिन न चढ़ा
अर्श  से फर्श तक  के सफ़र में
कमबख्त रौशनी तबाह हो गया
             (2)
दिल की हालत कुछ यूं बयान हुई
कुछ इधर गिरा कुछ उधर गिरा
राह-ए-उल्फत का ये नजराना है जालिम
न वो तुझे मिला न वो मुझे मिला

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