साथ ही मेरी इस रचना का भी आनंद लीजिये .....
यारा लगा मन फकीरी में
न डर खोने का
न खुशी कुछ पाने का
ये जहां है अपना
बीते न दिन गरीबी में
यारा लगा मन फकीरी में
जब से लागी लगन उस रब से
मन बैरागी सा हो गया
पथ-पथ घूमूं ढूंडू पिया को
ये फकीरा काफ़िर बन गया
मन फकीरा ये जान न पाए
आखिर उसे जाना है कहाँ
रब दे वास्ते ढूंडन लागी
रास्ता-रास्ता गलियाँ-गलियाँ
क्या करूँ कुछ समझ न आये
उस रब दे मिलने के वास्ते
ढूँढ लिया सब ठौर-ठिकाने
गली,कूचे और रास्ते
जाने कब जुड़ेगा नाता
और ये फकीर तर जावेगा
सूख गयी आँखे ये देखन वास्ते
रब ये मिलन कब करवावेगा
अंतर्मन में झांकिये ..रब मिल जायेगा ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteचिन्ता न करें...चिट्ठाजगत को तो वापस आना ही है..दिसम्बर एण्ड तक बस समस्या है.
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