आज मुझे बहुत अच्छी एक कविता पर नज़र पड़ी .बंगला में ये कविता पढ़कर बहुत मज़ा आया | मैंने अनुवाद करने की कोशिश की है हो सकता है आप सबको भी अच्छा लगे |
गर जहाज़ दरिया में चलाऊँ
जम जाए झाग,लहर -थम जाऊं
गर आलोकित मणि हाथ पर है रखते
मणि बन जाए कांच देखते ही देखते
गर पीता हूँ झरने का पानी मीठा
नमकीन स्वाद से जुबां है भर जाता
अल्ला और मालिक को देता हूँ ये अर्जी
पक्षी.... बाज़ का ऐसे उड़े जैसे मुर्गी
कवि अबू-अल-शमकमक द्वारा रचित इस कविता को पढ़कर हिंदी में अनुवाद करने में अपने आप को मैं रोक नही पाई |भूल-त्रुटि माफ़ करें
‘‘ये मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी
ReplyDeleteजो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी’’
‘‘स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं...’’