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Tuesday, March 23, 2010

मन की बात

रे मन तेरी ये दुस्साहस जो तूने प्रेम रचा डाला,
तिल-तिल जलती इस मन को अब दे छांव प्यार की मिटे ज्वाला II

मन की माने या दुनिया की जो बार बार ये बतलाती है ,
की प्यार  आग का दरिया है डूब के ही हमें पार जाना हैii

मन के कोने से आस जगी नहीं डरने की ये बात नहीं ,
प्यार ही तो है नफरत तो नहीं दुनिया की शाश्वत गाथा यही II

1 comment:

  1. बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

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