तिल-तिल जलती इस मन को अब दे छांव प्यार की मिटे ज्वाला II
मन की माने या दुनिया की जो बार बार ये बतलाती है ,
की प्यार आग का दरिया है डूब के ही हमें पार जाना हैii
मन के कोने से आस जगी नहीं डरने की ये बात नहीं ,
प्यार ही तो है नफरत तो नहीं दुनिया की शाश्वत गाथा यही II
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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