मेरी राह है तुमसे जुदा
बहुत दूर न चल सका
बदला राह
क्या कभी मेरे फूलों में
गुथेंगी माला तुम्हारे नाम का
बनेगा हार
तुम्हारी बंसी बजे दूर हवा में
रोते हुए वो किसे पुकारे
चलते-चलते मैं थक गया
बैठा राह किनारे
तरू छाया में
दर्द छिपा है साथी खोने का
किसे मैं कहूं ये मन कि व्यथा
राह पकड़ चला पथिक
अपने पथ पर, मुझे छोड़कर
मेरी राह है सबसे जुदा
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Tuesday, June 29, 2010
Sunday, June 27, 2010
ऐसे उदास नज़रों से ..................
ऐसे उदास नज़रों से न देखो
दिल दहल जाएगा
उदास क्यों हो बता दो गर
माथे पर शिकन
आँखों में उदासी
चेहरा बेनूर कर देगा
परेशान क्यों हो
रास्ते कई है
उलझन है सुलझ जाएगा
मित्र,सखा,बंधु
कुछ भी कह लो मुझे
मै हूँ हर पल
साथ तुम्हारे
मानो न मानो
अपना मुझे तुम
इस कठिन घड़ी में हूँ
आस पास तुम्हारे
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Friday, June 25, 2010
कविता लिखना जारी है ............
बीत गए दिन कविता लिखते
पढ़ना तो जैसे भूल गए
क्या करना औरों का पढ़कर
मनो हम पंडित हो गए
हुए शिकार गलतफहमी के कब
यह तो पता न चल पाया
प्रशंसा पाकर फूली न समाई
सफ़र लिखने का चल पड़ा
ऐसे ही एकदिन लिखने बैठी
तो दिमाग शून्य सा हो गया
भाव व्यंजना शब्द तो जैसे
मीलों दूर छूट गया
अपने पर जो गर्व था मुझको
चूर्ण-विचूर्ण हो गया
पठान-पाठन की महत्ता को
मैंने तो बस जान लिया
आदत जो लिखने कि थी मुझको
अब थोड़ा मद्धिम पड़ गया है
अब पढ़ना आरंभ कर दिया है
पर कविता लिखना जारी है
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Wednesday, June 23, 2010
ख़्वाबों की दुनिया से.............
ख़्वाबों की दुनिया से जगाऊँ मैं तुझे
यथार्थ के धरातल पर ले आऊं मैं तुझे
माना कि ये दुनिया बहुत हसीं है
पर कठिनाई भरा रास्ता भी पथ में पड़ी है
जिस दुनिया में है सूरज चाँद सितारे
वहीं रहते है अत्याचारी हत्यारे
गर जीना है यहाँ तो रहना है संभलकर
न जाने कब तू गिर पडेगा फिसलकर
ख़्वाबों को हकीकत का रंग तो दे दो
हकीकत को ख़्वाबों से सींच कर चलो
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Sunday, June 20, 2010
जाह्नवी हूँ ...........
मै नदी हूँ .............
पहाड़ो से निकली
नदों से मिलती
कठिन धरातल पर
उफनती उछलती
प्रवाह तरंगिनी हूँ
परवाह किसे है
ले चलती किसे मै
रेट हो या मिटटी
न छोडूँ उसे मै
तरल प्रवाहिनी हूँ
राह बनाती
सागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
Saturday, June 19, 2010
अनुमति दो माँ ...............
चरण-स्पर्श का अनुमति दो माँ
चरणों से दूर मत करो
जो अधिकार जन्म से है मिला
उस अधिकार को मत हरो
ऐसा क्या अनर्थ हुआ मुझसे
कि आपने मूंह फेर लिया
नौ महीने गर्भ में स्थान दिया
और दुनिया में लाकर त्याग दिया
माना कि गलती थी मेरी
आपका सुध मैंने नही लिया
पर ममता नही होता क्षण-भंगुर
कभी त्याग दिया कभी समेट लिया
माना मै हूँ स्वार्थ का मारा
माँ की ममता न पहचान पाया
पर आप ने भी अधिकार न जताया
मुझे पराया कर तज दिया
अब मेरी बस इतनी इच्छा है
आप की गोद में वापस आऊँ
अपने संतान से आहत हुआ जब
लगा आपकी गोद में ही सिमट जाऊं
चरणों से दूर मत करो
जो अधिकार जन्म से है मिला
उस अधिकार को मत हरो
ऐसा क्या अनर्थ हुआ मुझसे
कि आपने मूंह फेर लिया
नौ महीने गर्भ में स्थान दिया
और दुनिया में लाकर त्याग दिया
माना कि गलती थी मेरी
आपका सुध मैंने नही लिया
पर ममता नही होता क्षण-भंगुर
कभी त्याग दिया कभी समेट लिया
माना मै हूँ स्वार्थ का मारा
माँ की ममता न पहचान पाया
पर आप ने भी अधिकार न जताया
मुझे पराया कर तज दिया
अब मेरी बस इतनी इच्छा है
आप की गोद में वापस आऊँ
अपने संतान से आहत हुआ जब
लगा आपकी गोद में ही सिमट जाऊं
Thursday, June 17, 2010
प्यार ही तो है .........
चन्दा को चांदनी से
सूरज को रोशनी से
बादल को बूंदों से प्यार ही तो है
पेड़ों को साए से
धरती को आस्मां से
ईश्वर को भक्तों से प्यार ही तो है
सागर अपने तट से
बादल अपने पथ से
वायु अपने वेग से
होता नहीं जुदा
क्यों न हम सब मिलकर बनाये ऎसी दुनिया
अपनों में हो सद्भाव देश से न हो जुदा
सूरज को रोशनी से
बादल को बूंदों से प्यार ही तो है
पेड़ों को साए से
धरती को आस्मां से
ईश्वर को भक्तों से प्यार ही तो है
सागर अपने तट से
बादल अपने पथ से
वायु अपने वेग से
होता नहीं जुदा
क्यों न हम सब मिलकर बनाये ऎसी दुनिया
अपनों में हो सद्भाव देश से न हो जुदा
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Wednesday, June 16, 2010
तेरे अश्को के............
तेरे अश्को के दामन से
कुछ बूँदें चुरा लूं
तेरे जुल्फों के साए में
जीवन गुज़ार दूं
तेरे अधरों की मुस्कान पर
जां निसार दूं
दिल की माने तो तन मन बिसार दूं
पर तुझको नहीं है इल्म
मेरे प्यार का
तू तो है बेखबर नहीं है बेवफा
समझोगी जिस दिन तुम
मेरे प्यार को
आओगी मेरे ही पास जान लो
रह न सकोगी मुझसे जुदा होकर
इतना भरोसा है अपने प्यार पर
कुछ बूँदें चुरा लूं
तेरे जुल्फों के साए में
जीवन गुज़ार दूं
तेरे अधरों की मुस्कान पर
जां निसार दूं
दिल की माने तो तन मन बिसार दूं
पर तुझको नहीं है इल्म
मेरे प्यार का
तू तो है बेखबर नहीं है बेवफा
समझोगी जिस दिन तुम
मेरे प्यार को
आओगी मेरे ही पास जान लो
रह न सकोगी मुझसे जुदा होकर
इतना भरोसा है अपने प्यार पर
Tuesday, June 15, 2010
भ्रमर कहे..................
गुलाब का फूल खिला है इधर
मधुप मत जाओ रे
फूलों से शहद लेते हुए कहीं
तुम काँटों से आहत न हो रे
इधर है बेला उधर है चम्पा
विविध फूल है सर्वत्र
व्यथा कथा अपने मन की
कह दो ये यहाँ है एकत्र
भ्रमर कहे मै ये जानूं
इधर बेला है उधर नलिनी
पर मैं न जाऊं इधर - उधर
ये नहीं है मेरी संगिनी
मैं तो अपनी व्यथा-कथा
बांचुंगा गुलाब के संग
गर मैं आहत होऊं तो क्या
सह लूंगा मै काँटों का दंश
मधुप मत जाओ रे
फूलों से शहद लेते हुए कहीं
तुम काँटों से आहत न हो रे
इधर है बेला उधर है चम्पा
विविध फूल है सर्वत्र
व्यथा कथा अपने मन की
कह दो ये यहाँ है एकत्र
भ्रमर कहे मै ये जानूं
इधर बेला है उधर नलिनी
पर मैं न जाऊं इधर - उधर
ये नहीं है मेरी संगिनी
मैं तो अपनी व्यथा-कथा
बांचुंगा गुलाब के संग
गर मैं आहत होऊं तो क्या
सह लूंगा मै काँटों का दंश
आपका इंतज़ार है.
सच बोलो तो संकट में फंसता है प्राण
पर झूट के तो नहीं होते है पाँव
गुंडागर्दी , चोरी , लूटपाट
त्रस्त है देश इन सबसे आज
कहाँ है वो जो सुधारेंगे देश को
ऐसा ही कुछ लिया था प्रण बढ़ाकर आवेश को
पर ऐसा कुछ हमें द्रष्टव्य न हुआ
देश तो और भी पतन की ओर गया
आतंकी,अतिवादियों ने देश कब्जाया
देश का ठेकेदार मूंह ताकता रह गया
नियति हमारी क्या इतनी ही खराब है ?
कब लेंगे अवतार कल्कि जी बस आपका इंतज़ार है
पर झूट के तो नहीं होते है पाँव
गुंडागर्दी , चोरी , लूटपाट
त्रस्त है देश इन सबसे आज
कहाँ है वो जो सुधारेंगे देश को
ऐसा ही कुछ लिया था प्रण बढ़ाकर आवेश को
पर ऐसा कुछ हमें द्रष्टव्य न हुआ
देश तो और भी पतन की ओर गया
आतंकी,अतिवादियों ने देश कब्जाया
देश का ठेकेदार मूंह ताकता रह गया
नियति हमारी क्या इतनी ही खराब है ?
कब लेंगे अवतार कल्कि जी बस आपका इंतज़ार है
Monday, June 14, 2010
कबीर के पद
कबीर माला मनहि कि , और संसारी भीख
माला फेरे हरी मिले,गले रहट के देख II1II
जहां क्रोध तहां पाप है,जहां क्षमा तहां आप II2II
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घडा , ऋतू आये फल होय II3II
माला फेरे हरी मिले,गले रहट के देख II1II
कबीर जी कहते है कि मन का माला ही सच्चा होता है बाक़ी तो दिखावा है यदि माला फेरने से ही भगवान् मिलता है तो रहट के गले को देख कितनी बार वो माला फिरती रहती है . अर्थात मन से फ़रियाद करने पर ही इश्वर प्राप्त होता है .जहां दया तहां धर्मं है , जहां लोभ तहां पाप,
जहां क्रोध तहां पाप है,जहां क्षमा तहां आप II2II
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घडा , ऋतू आये फल होय II3II
रे मन चिंता मत कर ! धीरे - धीरे सब कुछ हो जाएगा जिस तरह माली साल भर सौ -सौ घडा पानी पेड़ में देता है पर फल मौसम आने पर ही लगता है . अर्थात सभी कम समय आने पर ही पूरा होगा धैर्य रखना चाहिए
Sunday, June 13, 2010
क्या लिखूं .............................
क्या लिखूं आज समझ न आये
कविता , कहानी या ग़ज़ल
वर्ण, छंद लय हाथ न आये
स्वयं रचूं या करूँ नक़ल
पर रचना अपने आप जो आये
उसकी महत्ता ही निराली है
शब्द जो स्वयं रच जाए
अपनी रचना वो कहलाती है
अपने भावों को शब्दों में ढाला
तो कविता रच गयी
धीरे - धीरे खोयी व्यंजना
शब्दों में आकर ढल गयी
इस तरह मेरे कविता को
एक शरीर मिल गया
खोयी हुई अपनी काया को
अंतत: कविता ने हासिल कर लिया
LaGASSE's SIGNATURE 'FOSSIL TEXTURE' PAINTINGS.
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कविता , कहानी या ग़ज़ल
वर्ण, छंद लय हाथ न आये
स्वयं रचूं या करूँ नक़ल
पर रचना अपने आप जो आये
उसकी महत्ता ही निराली है
शब्द जो स्वयं रच जाए
अपनी रचना वो कहलाती है
अपने भावों को शब्दों में ढाला
तो कविता रच गयी
धीरे - धीरे खोयी व्यंजना
शब्दों में आकर ढल गयी
इस तरह मेरे कविता को
एक शरीर मिल गया
खोयी हुई अपनी काया को
अंतत: कविता ने हासिल कर लिया
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Wednesday, June 9, 2010
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
अब तो मेरा राम नाम दूसरा न कोई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरा लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
माता छोडी पिता छोडे छोडे सगा भाई।
साधु संग बैठ बैठ लोक लाज खोई॥
सतं देख दौड आई, जगत देख रोई।
प्रेम आंसु डार डार, अमर बेल बोई॥
मारग में तारग मिले, संत राम दोई।
संत सदा शीश राखूं, राम हृदय होई॥
अंत में से तंत काढयो, पीछे रही सोई।
राणे भेज्या विष का प्याला, पीवत मस्त होई॥
अब तो बात फैल गई, जानै सब कोई।
दास मीरा लाल गिरधर, होनी हो सो होई॥
बसौ मोरे
बसौ मोरे नैनन में नंदलाल।
मोहनि मूरति, सांवरी सूरति, नैना बने बिसाल।
मोर मुकुट, मकराकृत कंुडल, अस्र्ण तिलक दिये भाल।
अधर सुधारस मुरली राजति, उर बैजंती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरां प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।
मोहनि मूरति, सांवरी सूरति, नैना बने बिसाल।
मोर मुकुट, मकराकृत कंुडल, अस्र्ण तिलक दिये भाल।
अधर सुधारस मुरली राजति, उर बैजंती माल।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरां प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।
Monday, June 7, 2010
याचना
मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नही की तुम सताओगी
तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी
वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंगन में
मै पहचाना नही की तुम ही जो आती हो सपनो में
खता मेरी बस इतनी थी की रोका था नही तुमको
समझ मेरी न इतनी थी पकड़ लूं हाथ , भुला जग को
पडेगा आना ही तुमको की तुम ही हो मेरी किस्मत
भला कैसे रहोगी दूर कि तुम ही हो मेरी हिम्मत
कि जब आयेगी हिचकी तुम समझ लेना मै आया हूँ
तुम्हारे सामने दर पे एक दरख्वास्त लाया हूँ
कि संग चलकर तुम मेरी ज़िंदगी को खूब संवारोगी
मेरे जीवन की कडवाहट को तुम अमृत बनाओगी
पनाहों में जो आया हूँ रहम मुझ पर ज़रा करना
अब आओ भी खडा हूँ राह पर निश्चित है संग चलना
painting by M F HUSSAIN
तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी
वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंगन में
मै पहचाना नही की तुम ही जो आती हो सपनो में
खता मेरी बस इतनी थी की रोका था नही तुमको
समझ मेरी न इतनी थी पकड़ लूं हाथ , भुला जग को
पडेगा आना ही तुमको की तुम ही हो मेरी किस्मत
भला कैसे रहोगी दूर कि तुम ही हो मेरी हिम्मत
कि जब आयेगी हिचकी तुम समझ लेना मै आया हूँ
तुम्हारे सामने दर पे एक दरख्वास्त लाया हूँ
कि संग चलकर तुम मेरी ज़िंदगी को खूब संवारोगी
मेरे जीवन की कडवाहट को तुम अमृत बनाओगी
पनाहों में जो आया हूँ रहम मुझ पर ज़रा करना
अब आओ भी खडा हूँ राह पर निश्चित है संग चलना
painting by M F HUSSAIN
Saturday, June 5, 2010
बदलती तस्वीर
ये है दुनिया की बदलती तस्वीर
कभी था आपस में सद्भाव
परिवार में था एका नहीं था टकराव
बच्चों से रहता था घर गुलज़ार
क्यों न हो होता था जो संयुक्त परिवार
पर ये तो रही बीते दिनों की बात
अब तो परिवार शतरंज बिछते है बिसात
कौन किसको पछाड़े और बिगाड़े बनते हुए बात
भाई भाई का दुश्मन पसंद नहीं एक दुसरे का साथ
मशीनों ने ले ली इंसानों का स्थान
हृदय है संवेदनहीन बेदिल बेजान
चिट्ठियां समेटती थी माटी की खुशबू
पर अब तो यंत्रों पर रहा न काबू
अनजान लोगो से बढाते है रिश्ता
टूटता है तो टूटे अपनों से नाता
आखिर क्या जरूरत रह गयी है अपनों की
बढ़ता है दायित्व मै तो चलूँ बचता बचाता
कभी था आपस में सद्भाव
परिवार में था एका नहीं था टकराव
बच्चों से रहता था घर गुलज़ार
क्यों न हो होता था जो संयुक्त परिवार
पर ये तो रही बीते दिनों की बात
अब तो परिवार शतरंज बिछते है बिसात
कौन किसको पछाड़े और बिगाड़े बनते हुए बात
भाई भाई का दुश्मन पसंद नहीं एक दुसरे का साथ
मशीनों ने ले ली इंसानों का स्थान
हृदय है संवेदनहीन बेदिल बेजान
चिट्ठियां समेटती थी माटी की खुशबू
पर अब तो यंत्रों पर रहा न काबू
अनजान लोगो से बढाते है रिश्ता
टूटता है तो टूटे अपनों से नाता
आखिर क्या जरूरत रह गयी है अपनों की
बढ़ता है दायित्व मै तो चलूँ बचता बचाता
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