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Tuesday, July 13, 2010

दिन में दिखा तारा



लौटे सब स्कूल में अब 
समाप्त  हुआ छुट्टी 
फिर से चले किताब लिए 
सब है दुखी-दुखी 

पढने के बाद सब बच्चों  का 
इरादा क्या था इसबार 
समय हुआ है अब 
हिसाब देने की है दरकार 

किसी ने पढ़ा  पोथी पत्र 
और किसी ने किये केवल गप्प
कोई तो था किताबी कीड़ा 
और कुछ  ने पढ़ा अल्प 

कुछ बच्चो ने रट्टा मारा 
किया रटकर याद 
कुछ ने तो बस किसी तरह 
समय दिया काट 

गुरूजी ने डांटकर पूछा 
सुन रे तू गदाई 
इस बार तुने पढ़ा भी कुछ 
या खेलकर समय बिताई 

गदाई ने तो डर के मारे 
आँखे फाड़कर खाँसा
इस बार तो पढ़ाई भी था 
कठिन सर्वनाशा 

ननिहाल मै घूमने गया 
पेड़ पर खूब चढ़ा 
धडाम से मै ऐसे गिरा 
दिन में दिखा तारा 

कवि सुकुमार राय द्वारा रचित कविता का काव्यानुवाद 

3 comments:

  1. ब्लॉग तो अच्छा लगा ही. सुकुमार राय का यह आबोल-ताबोल का हिंदी भावानुवाद भी भाया.

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  2. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

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  3. अनामिका जी, ये कहने से बिलकुल नहीं चूकुं गा की आप का ब्लॉग प्रस्तुतीकरण का ढंग बहुत ही अच्छा है. जहाँ तक इस रचना का सवाल है यह दिल को छु लेने वाली है...वास्तव में आप काव्यानुवाद की कला में काफी निपुण लगती हैं!!

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