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Sunday, August 22, 2010

कश्ती दरिया में

कश्ती दरिया में इतराए ये समझकर
दरिया तो अपनी है इठलाऊं इधर-उधर

किनारा तो है ही अपना ,ठहरने के लिए
दम ले लूंगा मै भटकूँ राह गर

पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
किनारों  को डुबो देता है सैलाब में

कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
नादरिया अपनी न किनारा अपना

e sakhi radhike1.m...

1 comment:

  1. कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
    नादरिया अपनी न किनारा अपना
    beautifully written

    ReplyDelete

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