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Wednesday, March 31, 2010
चंद्रमा के प्रकाश में ......
पूरक
Sunday, March 28, 2010
मुहावारोक्ति
छू मंतर हो गयी दुःख सारे हुई खत्म नकली ये प्यार का खेल
खरी खोटी सुनाया जम के रूचि गिरगिट रवि का रंग बदल गया
उसको तो किनारा करना था वह टाल-मटोल कर निकल गया
रूचि के दुनिया में बहार आयी आँखों का पर्दा सिमट गया
उसे तजने को जो ठानी थी जीना उसका भी खुश्वार हुआ
मेरी ये पंक्ति कविता नहीं ये मुहावरों का मेला है
जो कोई गलती दिख जाये ठीक करें आप का स्वागत है
Saturday, March 27, 2010
अमृतान्जल
हर रंग में यह ढल जाती है है यह बात गजब की
नष्ट न करो इस अमृत को संरक्षण कर लो जल की
पीकर घूँट अमृत की जन-जन धन्यवाद दो इश्वर को
बेकार न हो जाये जीवन पानी को सांस समझ लो
मन की धुंदली आँखों से.........
न झूठा है न सच्चा है बस अपनी धुन में बढ़ता है
ऊपर से देखो दुनिया तो झगड़े में पड़ा है जगत सारा
मन की आँखों से देखो तो ये झगड़े प्यार के लिये सारा
ये आतंक की दुनिया है कहने दो उसे जो कहता है
मैं जानू ये आतंकी है प्यार का मारा बेचारा
Tuesday, March 23, 2010
मन की बात
ek chhoti si kavita
बिन तेरे सब जीवन सून
भई ज़िन्दगी मिटटी मोल
क्यों सखी सजन ? नहीं पेट्रोल
Monday, March 22, 2010
जीवन का सच
Sunday, March 21, 2010
nav durgaa chitran
प्रथमं शैलपुत्रीति द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
तृतीयं चन्द्रघन्टेइति कुष्मान्डेइति चतुर्थकम
पंचमं स्कन्दमातेइति षष्ठं कात्यायनी तथा
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीतिचाष्टमम
नवमं सिद्धिदात्रीति नवदुर्गा प्रतीर्तिता
उत्तिन्ना तारिण वाणि ब्रह्मनैव महात्मना
bhaktikaal
1253 खुसरो Patiali में आज जो उत्तरी भारत में उत्तर प्रदेश का राज्य है में एटा के पास का जन्म हुआ. उनके पिता अमीर सैफुद्दीन बल्ख से आधुनिक दिन अफगानिस्तान में और उसकी माँ आया दिल्ली के थे. 1260 अपने पिता, खुसरो की मौत के बाद उसकी माँ के साथ दिल्ली गया था. 1271 खुसरो कविता की अपनी पहली दीवान संकलित, "Tuhfatus-Sighr". 1272 खुसरो अदालत कवि के रूप में राजा Balban भतीजे मलिक Chhajju के साथ अपनी पहली नौकरी मिल गई. 1276 खुसरो Bughra खान के बेटे (है Balban के साथ एक कवि के रूप में काम शुरू कर दिया). जबकि उसका दूसरा दीवान, Wastul-हयात, खुसरो बंगाल का दौरा किया लिखने 1279. 1281 सुल्तान मोहम्मद (है Balban दूसरे बेटे से कार्यरत हैं) और उसके साथ मुल्तान के पास गया. 1285 खुसरो हमलावर मंगोलों के विरुद्ध युद्ध में एक सैनिक के रूप में भाग लिया. वह कैदी लिया था, लेकिन बच गया. 1287 अमीर खुसरो हातिम अली (एक और संरक्षक) के साथ अवध के पास गया. 1288 उनकी पहली mathnavi, "Qiranus-Sa'dain" पूरा किया गया. 1290 जब जलाल दिन Firuz Khilji उद सत्ता में आई है, खुसरो द्वितीय mathnavi, "Miftahul Futooh" के लिए तैयार था. 1294 उनके तीसरे दीवान "Ghurratul-कमल 'पूरा हो गया. 1295 Ala उद दिन Khilji (कभी कभी वर्तनी "Khalji") सत्ता में आई और Devagiri और गुजरात पर हमला किया.1298 खुसरो अपने 'Khamsa-ई पूरा-Nizami ". इतिहास 1301 Khilji Ranthambhor, चित्तौर, मालवा और अन्य स्थानों पर हमला किया, और खुसरो राजा के लिए लिखने के लिए के साथ रहे. 1310 खुसरो निजामुद्दीन Auliya के लिए बंद हो गया, और Khazain उल Futuh पूरा किया. 1315 अलाउद्दीन Khilji मर गया. खुसरो mathnavi "Duval रानी-Khizr खान पूरा '(एक रोमांटिक कविता). 1316 कुतुब उद दिन मुबारक शाह राजा बन गया है, और ऐतिहासिक चौथे mathnavi Noh 'Sepehr "पूरा किया गया. 1321 मुबारक Khilji (कभी कभी वर्तनी "मुबारक Khalji") की हत्या और Ghiyath अल था दीन तुगलक सत्ता में आई थी. खुसरो को Tughluqnama लिखना शुरू कर दिया. 1325 सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के सत्ता में आए थे. निजामुद्दीन Auliya मृत्यु हो गई और छह महीने बाद इतनी खुसरो किया. है खुसरो कब्र दिल्ली के निजामुद्दीन दरगाह में अपने गुरु के पास है. खुसरो रॉयल कवि
खुसरो सर्जनात्मकता का शास्त्रीय दिल्ली सल्तनत से अधिक सात शासकों की शाही अदालतों से जुड़े कवि था. वह उत्तर भारत और पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि कई खिलाड़ी पहेलियों, गीतों और किंवदंतियों के उसे जिम्मेदार ठहराया. अपने भारी साहित्यिक उत्पादन और प्रसिद्ध लोक व्यक्तित्व के माध्यम से, खुसरो पहले एक सच्चे बहु सांस्कृतिक या बहुलवादी पहचान के साथ (रिकॉर्ड) भारतीय personages में से एक का प्रतिनिधित्व करता है.
वह दोनों फारसी और हिंदुस्तानी में लिखा था. उन्होंने यह भी तुर्की, अरबी और संस्कृत बात की थी. उनकी कविता अब भी पाकिस्तान और भारत में सूफी दरगाहों पर आज गाया है.
अमीर खुसरो एक Khamsa के लेखक जो अनुकरणीय था कि के पहले-फारसी भाषा के कवि Nizami Ganjavi.उनके काम करने के लिए Transoxiana में Timurid अवधि के दौरान फारसी कविता की महान कृतियों में से एक माना जाता था
अमीर खुसरो की पहेलियां... (दो-सुखन)
राहगीर लुटा क्यों...?
जोगी भगा क्यों...?
ढोलकी चुपी क्यों...?
गोश्त खाया न क्यों...?
डोम गाया न क्यों...?
मुसाफिर प्यासा क्यों...?
गधा उदासा क्यों...?
रोटी जली क्यों...?
घोड़ा अड़ा क्यों...?
पान सड़ा क्यों...?
सितार बजा न क्यों...?
औरत नहाई न क्यों...?
घर अंधियारा क्यों...?
फकीर बिगड़ा क्यों...?
अनार चखा न क्यों...?
वज़ीर रखा न क्यों...?
दही जमा न क्यों...?
नौकर रखा न क्यों...?
समोसा खाया न क्यों...?
जूता पहना न क्यों...?
पंडित नहाया न क्यों...?
धोबन पिटी क्यों...?
2. पवन चालत वेह देहे बढ़ावे
जल पीवत वेह जीव गंवावय
है वेह पियरी सुन्दर नार ,
नार नहीं पर है वेह नार उत्तर - आग .
1
और बिन वर्षा जल जाती है ;
पुरख से आवे पुरख में जाई ,
न दी किसी ने बूझ बताई . उत्तर -नदी
कवितायेँ
ख़ुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वा की धार,
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.
सेज वो सूनी देख के रोवुँ मैं दिन रैन,
पिया पिया मैं करत हूँ पहरों, पल भर सुख ना चैन
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
प्रेम भटी का मदवा पिलाइके
मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ
बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
बल बल जाऊं मैं तोरे रंग रजवा
अपनी सी रंग दीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
खुसरो निजाम के बल बल जाए
मोहे सुहागन कीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
Thursday, March 18, 2010
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Monday, March 15, 2010
उम्मीदों और नये संकल्पों का दिन नवसंवत्सर - HindiLok.com
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डॉ० रवीन्द्र नागर संसार में सभी नववर्ष का स्वागत और हार्दिक अभिनन्दन अपने-अपने ढंग से करते हैं। भारत में एवं विदेशों में संवत्सर को अत्यन्त उत्साह, नवीन संकल्प एवं आशा के साथ मनाते हैं। संवत्सर का शुभारंभ वैज्ञानिक और प्राकृतिक ढंग से हुआ है। महाराजा विक्रमादित्य ने भारत-भूमि को विदेशियों से मुक्त करने के पश्चात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से इस संवत्सर को प्रारंभ किया, इसलिए इसे विक्रम संवत्सर कहते हैं। इस वर्ष २०६७ वाँ संवत्सर है, जो 16 मार्च से आरंभ हो रहा है। यह दिन सृष्टि का आदि दिन भी है। सतयुग इसी दिन से प्रारंभ हुआ था। इसी दिन भारत में कालगणना का प्रारम्भ हुआ था। ब्रह्म पुराण में कहा गया है – चैत्रे मासि जगत् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि। अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपद को सूर्योदय होने पर पहले ब्रह्मा ने जगत की सृष्टि की थी। उन्होंने प्रतिपद को प्रवरा तिथि भी घोषित किया था। तिथीनां प्रवरा यस्माद् ब्रह्मणा समुदाहृता। ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि का आरंभ किया, उस समय इसको प्रवरा अथवा सर्वोत्तम तिथि सूचित किया था। सचमुच यह प्रवरा है भी। इसमें धार्मिक, सामाजिक, व्यावहारिक और सांस्कृतिक आदि बहुत-से महत्व के कार्य आरम्भ किये जाते हैं। इसमें संवत्सर का पूजन, नवरात्र घट स्थापना, ध्वजारोहण, वर्षेश का फल-पाठ आदि अनेक लोक-प्रसिद्ध और पवित्र कार्य होते हैं। इसी दिन मत्स्यावतार हुआ था। कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुभफल पक्षगा। मान्यता है कि इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने दक्षिण प्रदेश को बालि के अत्याचारों से मुक्त किया था। इससे इसे स्वतन्त्रता का दिन माना जाता है। ध्वजारोहण की प्रथा इसी का प्रतीक है। संवत्सर की प्रथम तिथि को पर्व रूप में मनाने की प्रथा बहुत प्राचीन है। अथर्ववेद में कहा गया है – संवत्सरस्य प्रतिमां यां त्वां त्र्युपास्महे। संवत्सर की प्रतिमा स्वरूप हम जिस प्रभु की उपासना करते हैं, वह हमें दीर्घायु वाली प्रजा और धन से युक्त करे। शतपथ ब्राह्मण और विविध पुराणों में भी इसका उल्लेख है। तदनुसार इस संवत्सर के प्रारंभ काल से ही भारतीय सर्वत्र संवत्सर महोत्सव मनाते हैं। उत्सव चन्द्रिका नामक ग्रंथ में लिखा है – प्राप्ते नूतन वत्सरे प्रति गृहं कुर्याद् ध्वजारोपणम्। अर्थात नूतन वर्ष आने पर प्रत्येक घर में ध्वजारोहण, स्नान, मंगल, पूजन, उत्सव आदि करना चाहिए। देवताओं का पूजन और बड़े लोगों का सत्कार होना चाहिए। विद्वानों से संवत्सर का फल जानना चाहिए। अपने घर को तोरण वन्दनवार से सजाकर मंगल कार्य आरम्भ करना चाहिए। नववर्ष वासंतिक नवरात्र का भी पहला दिन है, अतः कलश-स्थापन आदि किया जाता है। श्रद्धालु नूतन वर्ष का फल , राशि फल सुनते हैं। मिट्टी के घड़े, सुराही आदि शीतल जल के उपयोग के निमित्त देते हैं। शारीरिक स्वास्थ्य के लिए नीम की पत्ती के साथ मिश्री मिलाकर उसके भक्षण का भी विधान है। आयुर्वेद के अनुसार वसंत ऋतु में होने वाली व्याधियों के शमन के लिए ये वस्तुएँ बहुत गुणकारिणी हैं। ग्रीष्म के रक्तज विकारों की शान्ति के लिए तो ये बहुमूल्य औषधियाँ हैं। भारतीय संस्कृति समन्वय और अनेकता में एकता की पक्षधर है। संवत्सर को पूरे देश में भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र, गुजरात, कर्णाटक आदि राज्यों में इसे गुड़ी पड़वा के नाम से जाना जाता है। प्रातः उठकर भगवान की अर्चना, बड़ों को प्रणाम और सभी को अभिनन्दन करने के बाद घर के बाहर एक ध्वजा और नवीन वस्त्र की पताका लगाने का विधान है। मिश्री एवं नीम की पत्तियाँ परिवार के सदस्यों के साथ भक्षण की विधि है। इसका भाव यह है कि पूरे वर्ष में हम मीठी-कड़वी, सफलता-असफलता, लाभ-हानि, यश-अपयश सब बातों को सहन करने के लिए तैयार रहें। द्वार एवं चौराहों पर रंगोली बनायी जाती है। आन्ध्र प्रदेश में इसे उगादि के नाम से जाना जाता है। उगादि का अर्थ है युगादि। युग अर्थात वर्ष का आदि-प्रथम दिवस। भिन्न-भिन्न पदार्थों के साथ भगवान को प्रणाम करने का और सबको अभिवादन करने की परंपरा है। घर के बाहर तुलसी-पूजा की जाती है। तमिलनाडु में इस दिन को वर्षापिरप्पु कहते हैं। भगवान की आराधना कर नारियल तथा ऋतु की वस्तुएँ समर्पित की जाती हैं। बहनें घर के बाहर सात रंगों से अल्पना बनाकर नववर्ष का स्वागत करती हैं। केरल में इस दिन को विषु कहते हैं। केले के वृक्ष और विभिन्न फलों से नववर्ष का स्वागत किया जाता है। घर के सदस्य मिलकर वनस्पति देवता की अर्चना करते हैं और पूरे परिवार के लिए मंगल-कामना करते हैं। बंगाल में इसे नववर्षम् कहा जाता है। माँ काली की वंदना और संगीत के साथ नववर्ष के स्वागत की परम्परा है। असम में बिहु से नववर्ष का शुभारंभ माना जाता है। परिवार के सदस्य नवीन वस्त्र धारण करके सबका अभिनंदन करते हैं। परस्पर उपहार देते हैं। कश्मीर में इस दिन को नवरे के नाम से जाना जाता है। नवरे का अर्थ है नवीन दिवस। घर की महिलाएँ थाली में सूखे मेवों के साथ धूप-दीप रखकर परिवार के सभी सदस्यों को दिखाती हैं और भगवान से सभी के लिए स्वास्थ्य की कामनाकरती हैं। उत्तर भारत में चैत्र नवरात्रि के इस प्रथम दिवस पर घट-स्थापन, पूजन-अर्चन की विधि संपन्न की जाती है। सम्पूर्ण भारत में संवत्सर नवीन आशा, उत्साह, सद्भाव, प्रेम, विनम्रता, सहजता और शालीनता का संचार करता है |
क्या आपने मास्टर दा का नाम सुना है? - HindiLok.com
सूर्या सेन की पूरी जिंदगी में कई प्रेरक घटनाएं हैं। किस-किसका जिक्र करुं। चिट्टगोंग और पूरे बंगाल के लिए वो एक ऐसे हीरो हैं,जिनकी आज भी पूजा की जाती है। लेकिन, इसी सूर्या सेन को बंगाल के बाहर कितने लोग जानते हैं? उनकी शहादत से कितने लोग परीचित हैं? ये सवाल मुझे मथ रहा है। दरअसल, मैं अभी-अभी ‘चिटगोंग’ फिल्म की शूटिंग करके लौटा हूं। इस फिल्म में मैंने मास्टर दा उर्फ सूर्या सेन का किरदार निभाया है। इस शूटिंग को करते हुए बहुत आनंद आया। लेकिन, इसी दौरान इस सवाल ने उमड़ना शुरु किया कि ऐसा क्यों है कि सारा हिन्दुस्तान इतने बड़े क्रांतिकारी के योगदान से लगभग अनभिज्ञ है। जबकि पूरा बंगाल और बांग्लादेश उनकी पूजा करता है।
लेकिन, बात सिर्फ मास्टर दा के किरदार की नहीं है। भारतीय इतिहास में ऐसे किरदारों की लंबी फेहरिस्त है,जिन्हें रुपहले पर्दे पर फिर से जीवित किया जा सकता है। अच्छी बात यह है कि आज हर तरह की फिल्म के लिए बाजार तैयार है। वो दिन गए,जब निर्माता इन विषयों को हाथ लगाने से भी घबराते थे। आज हर नया विषय निर्माता-निर्देशक को लुभाता है क्योंकि उनका मानना है कि दर्शक अब नया देखना चाहते हैं। लेकिन, इस नए में मास्टर दा जैसे किरदार हों तो बात ही क्या।
हिन्दी फिल्मों पर अकसर इल्जाम लगता है कि वो युवा मस्तिष्क को बिगाड़ देते हैं। भटका देते हैं। लेकिन एक सत्य ये भी है कि आज फिल्में ही करोड़ों लोगों तक हिन्दी भाषा को लेकर जाती हैं। आज फिल्में ही भगत सिंह और मास्टर दा जैसे महापुरुषों के बारे में लोगों को सोचने पर मजबूर करती है। उम्मीद है कि चिटगोंग और मास्टर दा के बहाने लोग इस महान क्रांतिकारी के बारे में जानेंगे और फिर इस तरह की और भी फिल्में बनेंगी।
फिलहाल, मैं अपने निर्णय से बहुत खुश हूं कि मैंने मास्टर दा का किरदार निभाया। उनके किरदार को करते हुए बहुत कुछ सीखा है। उनको जानने की भरपूर कोशिश की है। और जब मैं दिल्ली लौटा हूं इस फिल्म की शूटिंग के बाद तो बिना सूर्या सेन उर्फ मास्टर दा के खुद को अकेला महसूस कर रहा हूं।
Monday, March 8, 2010
mahila vidheyak parit
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